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थोड़े क्षण और बीते । महाबल स्थिर दृष्टि से मलया को पी रहा था । और मलया भी इस अपरिचित नवयुवक की दृष्टि के स्पर्श का अनुभव कर रही थी ।
मलया ने सोचा- कौन है यह नवयुवक जो मुझे स्थिरदृष्टि से देख रहा है ? क्या कोई पूर्वभव के प्रेम का साक्षात् हुआ है ? क्या मेरे अस्पृष्ट हृदय का यह पहला स्पर्श किसी भावी का सूचक है ?
?
मलयासुन्दरी इस होनहार और सुन्दर युवक का परिचय प्राप्त करने के लिए आकुल व्याकुल हो रही थी । पर कैसे पूछा जाए जीभ स्तब्ध हो चुकी थी "हृदय चंचल होने पर भी स्तब्ध हो गया था पाया जाए ?
युवक का परिचय कैसे
यह प्रश्न मलया के मन को बार-बार छू रहा था । उसने महाबल की ओर पुनः देखा । दोनों की दृष्टियां पुनः मिलीं। एक अवाच्य काव्य निर्मित हो
गया ।
दूसरे ही क्षण मलया भीतर चली गई । महाबल वज्राहत-सा हो गया। उसने सोचा, ओह ! मलया के बिना जीवन शून्य है, व्यर्थ है कैसे हो ?
महाबल कुछ निर्णय करे, उससे पूर्व ही सेवक जल से भरा पात्र लेकर आ पहुंचा । उसने कहा - 'श्रीमन् ! जल
..."
'ओह, तू कहां चला गया था ?"
'आपने ही तो जल लाने के लिए भेजा था ।'
'हूं !' कहते हुए महाबल ने जलपात्र लिया, दो-चार घूंट जल पीया और
जलपात्र देते हुए सेवक से कहा- 'जा, मैं अभी अतिथिगृह में आता हूं ।'
'जी ।' कहकर सेवक नतमस्तक हो चला गया ।
क्या पुनः दर्शन नहीं होंगे ? क्या करूं ? मलया से मिलना
उसी क्षण मलयासुन्दरी पुनः झरोखे में आयी और लज्जा के भार से मंथर बनी हुई अपनी दृष्टि युवक पर स्थिर की ।
महाबल ने प्रेमभरी दृष्टि से मलया को देखा । तीसरी बार दोनों की दृष्टि टकरायी । राजकन्या महाबल की ओर कुछ फेंककर तत्काल अन्दर चली गई ।
महाबल ने देखा, एक पत्र नीचे फेंका गया था। महाबल ने उस पत्र को उठाया । वह ताड़पत्र का एक टुकड़ा था। उस पर कुंकुम से सुन्दर अक्षर लिखे हुए थे ।
सामने से दो माली इसी ओर आ रहे थे । महाबल तत्काल उस पत्र को छिपा एक ओर चला गया। दोनों माली बातें करते-करते दूसरी ओर चले गए।
मलबल मलयासुन्दरी ४९
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