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________________ था ं‘'मैं उसका रूप धारण कर राजभवन में प्रवेश करूं तो मन की आशा पूरी हो सकती है । अरे ! सामने चंपकमाला ही मिल जाए तो कैसी विकट परिस्थिति होगी ? दो क्षण सोच-विचार कर महाबल एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया । उस उपवन में उस समय केवल दो-तीन माली कार्य कर रहे थे । समय अनुकूल था संयोग भी अनुकूल था । वातावरण मधुर थामन ऊंची उड़ानें भर रहा था और यदि राजकन्या की झांकी मात्र मिल जाए तो वहां आना सफल हो जाता और आगे का निर्णय भी होता । महाबल ने अपने सेवक को पानी लाने भेजा । उसने कहा- 'मैं थक गया हूं । यहां बैठकर कुछ विश्राम कर प्यास बुझा लूं । तू जल्दी से पानी ले आ ।' सेवक तत्काल अतिथि गृह की ओर गया और महाबलकुमार वातायनों की ओर बार-बार झांकने लगा । एक क्षण आया । जीवन की विद्युत् चमक उठी एक वातायन में मलयासुन्दरी आयी और सहजतया आकाश की ओर देखने लगी । महाबल एकटक उस सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी को निहारता रहा । उसने मन-हीमन सोचा --'चित्रकार ने जो मुझे छवि दी थी, वह इसी सुन्दरी की है, किन्तु यह सुन्दरी तो उस चित्रांकनगत सुन्दरी से भी अधिक सुन्दर है अधिक निर्मल और अधिक लावण्यवती है. इस रूप का अंकन कोई भी कलाकार पूर्ण रूप से नहीं कर सकता । महाबल मुग्ध नेत्रों से मलयासुन्दरी को निहारता रहा। आसपास कौन है, स्वयं कहां है, इसका उसको भान भी नहीं रहा । भान कैसे हो ? मनुष्य के मन में जब एक रूप क्रीड़ा करने लगता है तब अन्यत्र कुछ भी दिखाई नही देता । एक ऊंचे वृक्ष पर दो पक्षी क्रीड़ा कर रहे थे । मलयासुन्दरी उस क्रीड़ा को एकाग्रता से देख रही थी अचानक उसे भान हुआ कि कोई मानव उसे देख रहा है ं‘'तत्काल उसने महाबल की ओर देखा । दोनों की दृष्टियां आपस में टकराई ं‘स्त्री-सुलभ लज्जा के कारण मलया की दृष्टि नीचे झुक गई परन्तु वह वक्रदृष्टि से नीचे खड़े अति सुन्दर, सशक्त और अनजान युवक की ओर देखती रही । तत्काल वह भीतर जाने को तैयार हुई पर उसके चरण आगे नहीं बढ़े । युग - के समान विराट् दीखने वाले कुछ क्षण मौन में गुजर गए । मलयासुन्दरी के हृदय पटल पर महाबल का चित्र अंकित हो गया था । उसका प्रथम यौवन तरंगित हो चुका था उसके शरीर में प्रकंपन की रेखाएं खचित हो गई थीं । ४५ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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