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मचा रहे थे। ___ एक स्त्री को देखने की इच्छा होना यौवन के अनुरूप है, किन्तु महाबल के हृदय की अभिलाषा भिन्न थी। वह विनम्र और सुशील था। वह स्त्री की ओर देखना कभी नहीं चाहता था। किन्तु आज जीवन-संगिनी का प्रश्न उभर चुका था। इसलिए वह परिणय-सूत्र में बंधने से पूर्व मिलना, देखना चाहता था। ___भोजन आदि से निवृत्त होकर वह पुनः सेवक को साथ ले नगर देखने गया। वातायनों को देखा, पर अब भी वे जनहीन थे। वह उन वातायनों में खड़ी मलया को देखना चाहता था, पर वैसा नहीं हुआ।
दिन बीत गया।
रात आयी। दीपकों की जगमगाहट से सारा नगर ज्योतिर्मय बन गया। वह अतिथिगृह की वाटिका में इधर-उधर घूमने लगा। मन व्याकुल था। वहां से दृष्टिगोचर होने वाले राजभवन के वातायन को वह बार-बार देख रहा था।
पर.. अब क्या किया जाए ?
ऐसी व्याकुलता असह्य होती है। यह बात न किसी को कही जा सकती है और न सही जा सकती है।
४६ महाबल मलयासुन्दरी
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