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________________ ६. आकुलता दस दिन बीत गए। आर्य सुशर्मा ने राज-परिवार के चित्र अंकित किए और अपने कथन के अनुसार देवी चन्द्रसेना के नृत्य की एक छवि भी अंकित की। उसे चन्द्रसेना को भेज दिया। युवराज महाबल आर्य सुशर्मा की कला पर मुग्ध हो चुका था। महाराज सुरपाल ने आर्य सुशर्मा की कला का मूल्यांकन किया और उसे प्रचुर धन देकर विदाई दी। -- नगर के अनेक संभ्रान्त व्यक्तियों ने अपने-अपने चित्रांकन के लिए आर्य सुशर्मा से प्रार्थना की। किन्तु कलाकार ने किसी की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया । क्योंकि समय कम था और वह चातुर्मास प्रारंभ होने से पूर्व घर लौट जाना चाहता था। वह चातुर्मास-काल में कहीं गमनागमन नहीं करता था; एक ही स्थान पर रहकर धर्म की आराधना करता था। ___ आर्य सुशर्मा ने दूसरे प्रदेश के राजाओं से मिलने की इच्छाओं को स्थगित कर सीधा बंग देश की ओर प्रस्थान किया। युवराज महावल कलाकार को विदाई देने लम्बे रास्ते तक साथ गया ओर नगरी की ओर लौटते समय कलाकार ने महाबल को छाती से लगाकर कहा-'युवराजश्री ! आपके पिता और महाराज वीरधवल-दोनों मित्र-राजा हैं। दोनों राज्यों के बीच प्रेम-संबंध है "प्रत्येक परिस्थिति अनुकूल है''आप कुमारी मलयासुन्दरी को प्राप्त करने का जरूर प्रयास करें. आप मलयासुन्दरी को पाकर धन्य होंगे और वह आपको पाकर धन्य होगी।' युवराज ने कहा--'मित्र ! मैं एक सप्ताह के भीतर चन्द्रावती जाने वाला 'आपने महाराजश्री से इस विषय में कुछ कहा है?' 'नहीं, प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मेरे मंत्री उपहारलेकर वहां जाएंगे। मुझे भी साथ जाने की अनुमति प्राप्त हुई है।' युवराज ने कहा। 'तब तो कार्य अवश्य ही हो जाएगा'--कहते हुए सुशर्मा ने युवराज के महाबल मलयासुन्दी ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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