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चन्द्रसेना वहां आ पहुंची।
राजकुमारी मलयासुन्दरी ने चन्द्रसेना का रूप-सौन्दर्य देखा । उसके कटाक्ष कामदेव के हृदयवेधक शर से भी अधिक तेज थे। उसके बदन पर आभरणों की शोभा अपूर्व थी ।
चन्द्रसेना ने शिववंदन नृत्य प्रारंभ किया। उस समय लग रहा था कि भक्तिरस मूर्त रूप लेकर वहां आ पहुंचा है और चन्द्रसेना के रोम-रोम से भक्तिरस का निर्झर प्रवाहित हो रहा है ।
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सारी पौरजनता एकटक उस मनोहारी नृत्य को देख रही थी । सबके न चन्द्रसेना के अवयवों की भाव-भंगिमा पर अठखेलियां कर रहे थे । रात्रि का चौथा प्रहर प्रारंभ हुआ । जन्मदिन का उत्सव संपन्न हुआ ।
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महाबल मलयासुन्दरी
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