________________
तत्काल राजपुरुषों ने जयघोष किया ।
युवराज ने बहन को मलयज की माला पहनायी और बहन ने युवराज को पुष्प - मुकुट भेंट दिया ।
उत्सव संपन्न हुआ । राजप्रासाद के विशाल मैदान में नृत्य का आयोजन था । अपार जन समूह नृत्य देखने एकत्रित हुआ था ।
वह नृत्य पूरा हो और देवी चन्द्रसेना का नृत्य प्रारंभ हो, इससे पूर्व हम महाराज वीरधवल के जीवन का संक्षिप्त, किन्तु महत्त्वपूर्ण वृत्तान्त जान लें ।
जब महाराज वीरधवल राजगद्दी पर आसीन हुए, तब एक सुन्दर कन्या चंपकमाला से पाणिग्रहण किया था। चंपकमाला जितनी रूपवती थी, उतनी ही गुणवती थी। दोनों का दाम्पत्य जीवन आनन्दमय, सुखमय और प्रेमलुप्त होकर बीत रहा था । दोनों एक-दूसरे में समा गए थे और सुखी जीवन जी रहे थे । पास में राज्य था, वैभव था, हृदय में उदारता थी, धर्म के प्रति भक्ति थी, संस्कार थे । मनुष्य में प्राप्त होने वाले सारे गुण उनमें थे, परन्तु विवाह हुए दस वर्ष पूरे हो गए थे। कोई भी संतान नहीं थी । यह दुःख दोनों को पीड़ित कर रहा था। दोनों कर्मवाद को मानते थे । पर एक अभाव खटकता था । इस अभाव को पूरा करने के लिए, अतिआग्रहपूर्वक चंपकमाला ने वीरधवल को दूसरे विवाह के लिए राजी किया और कनकावती नाम की एक रूपवती कन्या से उनका दूसरा विवाह कराया ।
उस विवाह को भी आज पांच वर्ष बीत चुके थे, पर कनकावती के कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई ।
संतान प्राप्ति के लिए राजा को पुनः विवाहसूत्र में बंधने के लिए चंपकमाला ने आग्रह किया। महाराजा वीरधवल ने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया । वैद्यों ने चंपकमाला और कनकावती का शारीरिक परीक्षण किया और राजा के समक्ष यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया कि रानी कनकावती वन्ध्यत्व के दोष से ग्रसित है, पर रानी चंपकमाला इस दोष से मुक्त है ।
रानी चंपकमाला ने तब अपनी कुलदेवी मलयादेवी की आराधना प्रारंभ
की |
आराधना काल में अनेक दैविक उपसर्ग हुए। रानी चंपकमाला अपनी विधि में दृढ़ रही, तनिक भी चलित नहीं हुई । रानी की स्थिरता, और एकनिष्ठता को देखकर मलयादेवी प्रसन्न हुई और उसने दो सन्तान होने का वरदान दिया । अन्त में देवी ने उसके गले में दिव्यशक्ति से संपन्न लक्ष्मीपुंज हार पहनाया और अदृश्य हो गई ।
रानी ने हो गई ।
यह सारी बात राजा से कही और कुछ समय पश्चात् वह गर्भवती
४० महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org