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८. जन्मदिन
आज राजकुमारी मलयासुन्दरी का जन्मदिन था 'साथ ही साथ युवराज का भी जन्मदिन था। दोनों युगल भाई-बहन थे।
इस जन्मदिन के उपलक्ष में सारा नगर सजाया गया था। स्थान-स्थान पर तोरणद्वार बनाए गए थे। सभी लोग आनन्दित और हर्ष से उछल रहे थे।
राजकुमारी और युवराज की शोभायात्रा निकलने वाली थी। शोभायात्रा का पूरा मार्ग सजाया गया था। युवराज और राजकुमारी दोनों स्वर्ण-रथ में आरूढ हुए। वह रथ खुला था''उस रथ के पीछे राज-परिवार के सदस्य, मंत्रीगण तथा अन्यान्य राज्य अधिकारी तथा आगंतुक अतिथि अपने-अपने वाहनों में चल रहे थे। उनके पीछे नगरजन जय-जयकार करते हुए आ रहे थे। वातायनों
और अन्य ऊंचे स्थानों पर खड़े स्त्री-पुरुष युवराज और राजकुमारी के रथों पर फूल बरसा रहे थे। अक्षत और सुगंधित द्रव्यों की वर्षा-सी हो रही थी।
राजकुमारी का लावण्य और विनम्रता तथा युवराज की सौम्यता से सारे दर्शक हतप्रभ हो रहे थे। कहीं नजर न लग जाए, इसलिए स्त्रियां 'थुत्कारा' डाल रही थीं।
लोग सत्ता के आगे झुकते हैं, पर प्रेम से नहीं; भय से। किन्तु जब लोग अपने व्यक्तियों के समक्ष झुकते हैं, तब प्रेम और समर्पण साकार होता है।
__ शोभायात्रा अपने स्थान पर पहुंची। लोगों ने उपहार देने प्रारंभ किए। उपहारों का ढेर लग गया। महाराज वीरधवल ने लक्ष्मीपुंज' नाम का एक अत्यन्त दिव्य रत्नहार अपनी कन्या को भेंट-स्वरूप देते हुए कहा-'पुत्री ! यह मंगलमय लक्ष्मीज हार देवाधिष्ठित है। इस हार में नौ ग्रहों को सदा प्रसन्न रखने के लिए भिन्न-भिन्न जाति के नौ रत्न हैं: ''इस हार के साथ तेरे मातापिता का आशीर्वाद है। "तू स्वस्थ रहे। तेरे संस्कार इस हार की भांति तेजोमय और स्वच्छ बने रहें। यह हार आज मैं तुझे अर्पित कर रहा हूं। इसे तू जीवनभर संजोए रखना। इसे प्राणों से भी प्यारा मानना।'
मलया ने माता-पिता का चरण-स्पर्श किया और हार को पहन लिया ।
महाबल मलयासुन्दर ३६
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