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________________ दूसरे दिन प्रातः चित्रकार से मिलने का समय निश्चित किया । दूसरे दिन का प्रातः काल । आर्य सुशर्मा स्नान, पूजा-पाठ आदि से निवृत्त होकर राजभवन में जाने की तैयारी करने लगा। इतने में राजा का एक कर्मचारी उनको राजभवन में ले जाने के लिए आ पहुंचा । चित्रकार ने अपने साथ कुछ चित्र लिये और वह उस राजकर्मचारी के साथ चल पड़ा । राजसभा अत्यन्त भव्य और सुन्दर थी । एक सिंहासन पर महाराज बैठे हुए थे। पास में एक सुन्दर युवक स्थित है और सामने एक वृद्ध पुरुष बैठा है । सुशर्मा ने देखा । उसने जान लिया कि महाराज के समक्ष बैठा हुआ वृद्ध पुरुष मंत्री है और पास में बैठा हुआ युवक राजकुमार है । महाराज ने चित्रकार का स्वागत किया और एक स्वच्छ आसन पर बिठाते हुए कहा- 'आपका परिचय मेरे मित्र महाराज वीरधवल के पत्र से प्राप्त हो चुका है। आप जैसे महान् चित्रकार के आगमन से मेरा स्थान पवित्र हुआ है ।' सुशर्मा ने कहा- 'कृपावतार ! आप जैसे सात्विक और प्रजावत्सल स्वामी के दर्शन कर मैं स्वयं धन्यता का अनुभव कर रहा हूं ।' औपचारिक वार्तालाप के पश्चात् महाराज सुरपाल ने चित्रांकन देखने की इच्छा व्यक्त की और उसके लिए दूसरे दिन का प्रथम प्रहर निश्चित हुआ । सभा की संयोजना का भार युवराज महाबलकुमार को सौंपा गया । दूसरे दिन आर्य सुशर्मा ने अपने अनुपम चित्रांकन प्रस्तुत किए। सारा राजपरिवार उन सूक्ष्म चित्रों को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया । शर्मा ने एक विचित्र प्रयोग कर सारी राजसभा को विस्मयान्वित कर डाला । उसने सभा में से किसी एक व्यक्ति को पास में बुलाया। एक बार उसकी पूरी आकृति को देख लिया। फिर अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर, तत्काल तूलिका से उसका चित्रांकन कर दिया। इसे देख सब चकित रह गए । महाराज सुरपाल ने कहा- 'कलाकार ! आपकी सिद्धि अनुपम है । आपसे एक अनुरोध है कि आप हमारे राज-परिवार के सदस्यों का चित्रांकन करें ।' सुशर्मा ने तत्काल कहा - ' आपकी आज्ञा की देरी है । मैं यह कार्य कर दूंगा ।' दूसरे दिन युवराज का जन्मदिवस था। पूरे नगरवासियों ने धूमधाम से उस दिवस को मनाया । 'चित्रांकनों की प्रशंसा के कारण नगर के बड़े-बड़े व्यक्ति सुशर्मा से मिलने, वार्तालाप करने आने लगे । अत्यन्त व्यस्तता के कारण सुशर्मा आठ दिनों में केवल दो ही चित्र तैयार करने में समर्थ हुए। एक चित्र था महाराज सुरपाल का और दूसरा चित्र था महारानी पद्मावती का । दोनों चित्र सजीव जैसे लग रहे थे। इन्हें देख राजा-रानी अत्यन्त प्रसन्न हुए और सुशर्मा को बहुमूल्य ३६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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