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अपनी निरावरण काया के वास्तविक स्वरूप का दर्शन हो जाएगा किन्तु इससे पूर्व आपको मेरी एक शर्त माननी होगी ।'
'कहो ।'
'कृपा कर आप यह चित्र कहीं न दिखाएं ।'
'तो'
! जिस दिन आपको अपना व्यवसाय दुःख रूप लगे, उस समय आप अपना यह चित्र सबको दिखाना ।'
'मैं समझी नहीं आपका कथन स्वयं एक समस्या होता है ।' चन्द्रसेना ने शय्या से उठते हुए कहा ।
'देवी ! जीवन की मंगल बातें समस्याओं में ही गुंथी हुई होती हैं । जीवन स्वयं एक समस्या है जो व्यक्ति समस्या का सही समाधान पा लेता है, उसी का पुरुषार्थ फलवान होता है "ये सब बातें जाने दें। पहले आपका चित्र पूरा हो जाए
'आप तूलिका से क्या कर रहे थे ?'
'मैं आपके निरावरण स्वरूप का माप ले रहा था "यह देखें आप समझ नहीं सकेंगी कहकर सुशर्मा ने रेखाएं दिखाईं ।
चन्द्रसेना रेखाओं को देख अवाक् रह गई । उन रेखाओं में उसके शयन करने का स्पष्ट चित्र उभर रहा था ।
चित्रकार ने मृदु स्वर में कहा - 'देवी ! क्षमा करें। आपको ऐसी अस्वच्छ
..."
शय्या पर
बीच में ही चन्द्रसेना बोल पड़ी - 'आप मुझे लज्जित न करें । मेरे मन में ऐसी कोई कल्पना भी नहीं आयी ।'
'मेरा सद्भाग्य है कि आपके मन को ऐसी चीज स्पर्श तक नहीं कर गई'कहकर सुशर्मा खंड से बाहर चला ।
चन्द्रसेना भी इधर-उधर की बातें कर अपने भवन की ओर चली गई । चित्रकार का समग्र चित्र इस रूपवती गणिका के चित्रांकन में मग्न हो गया. था उसके मन में इस चित्र को अंकित करने की त्वरा व्याप गई थी ।
मध्याह्न के पश्चात् उसने निश्चित किए हुए माप के कार्पासकपट अनुसार नाया और तत्काल विविध प्रकार के रंग और तूलिकाओं को एकत्रित कर एक स्थान पर रख दिया ।
चित्र में जब-जब आवेश उतरता है तब-तब मनुष्य उसके तनाव से भर जाता है ।
आर्य सुशर्मा पूरी रात और दूसरे दिन के मध्याह्न तक चित्रांकन करता रहा । चित्र को पूरा कर उसने संतोष की सांस ली और अपने आसन से उठा ।
२६ महाबल मलयासुन्दरी
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