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उसे तब तक न नींद का भान था और न भोजन का । प्रातः उसने थोड़ा-सा दुग्धपान किया और फिर चित्रांकन में तन्मयता से लग गया। ___मध्याह्न के समय उसने चित्र को अंतिम रूप देते हुए इधर-उधर कुछ रेखाएं खचित की और फिर चित्र को एक घटिका पर्यन्त ध्यान से देखा। .
उसने सोचा, मात्र नारी ही नहीं मनुष्य मात्र का सत्य-दर्शन उसके वास्तविक स्वरूप में ही किया जा सकता है।
जब वह चित्रकार चित्रांकन में तन्मय हो रहा था, तब अनेक व्यक्ति उससे मिलने आते-जाते रहे, पर उसने अपनी परिचारिका को स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि वह अभी किसी से नहीं मिल सकेगा' 'जिसे मिलना हो वह सायंकाल के बाद आए। .. चित्र को पूरा कर, आनन्दित होता हुआ चित्रकार अपने मुख्यकक्ष में आया। हाथ-मुंह धोकर वह भोजन करने चला गया।
कल तो उसे पृथ्वीस्थानपुर की ओर प्रस्थान करना ही था।
इसको लक्ष्य कर महाराज वीरधवल ने पृथ्वीस्थानपुर के महाराज को संबोधित कर एक पत्र लिखकर कलाकार को दिया था।
उसने यह निश्चय किया था कि प्रस्थान करते समय वह देवी से मिलेगा और यह निरावरण चित्र उसे दे देगा।
महाबल मलयासुन्दरी २७
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