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सुशर्मा अपने स्थान की ओर लौट गया ।
चन्द्रसेन राजसभा में उपस्थित नहीं हुई थी; किन्तु कलाकार के सम्मान की बात उसे ज्ञात हो गई थी ।
अपने कार्यों से निवृत्त होकर चन्द्रसेना अपनी शय्या पर जाकर सो गई । उस समय उसके मानस पटल पर आर्य सुशर्मा की मूर्ति उभरने लगी । चित्रकार की कला उसके हृदय में समा चुकी थी, किन्तु स्वयं कलाकार भी उसके हृदय के एक कोने में बस चुका था । उसने मन ही मन सोचना प्रारंभ किया कि सुशर्मा को हृदय का स्वामी कैसे बनाया जाए । मेरे मन में ऐसी अनेक भावनाएं जागती हैं, किन्तु ज्यों ही मैं उसके समक्ष जाती हूं, एक भी भावना अभिव्यक्त नहीं कर पाती । ऐसा क्यों होता है ? कल कलाकार ने कैसे कह डाला कि बहन और माता की बात को टाला नहीं जा सकता । यह अकल्पित बात थी । किन्तु उस समय भी मैंने उसका प्रतिकार नहीं किया उनके हाथ पकड़कर भी मैं नहीं कह सकी कि अरे ! आप यह क्या कर रहे हैं ? मैं आपकी हूं और सदा आपकी ही रहना चाहती हूं आप ही मेरे तन-मन के स्वामी हैं "मैं आपका प्रिया मैं आपकी दासी"
किन्तु ऐसा हो नहीं सका । उसके मन में दूसरा विचार उभरा। कल मुझे उनके पास जाना है वे मेरा निरावरण चित्रांकन करेंगे उस समय मुझे उनके सामने लज्जारूपी वस्त्रों से आवृत होकर खड़ा रहना होगा. "क्या उस समय मेरा रूप उनके प्राणों को नहीं बांध पाएगा? जरूर बांध लेगा वह ऐसा बंधन होगा कि अनन्त जन्म तक हम उसमें बंधे रहेंगे यह कभी निष्फल नहीं होगा । इस प्रकार एक अप्रतिम आशा को संजोती हुई चन्द्रसेना बहुत समय बाद निद्रादेवी की गोद में चली गई ।
शर्मा अपने नित्य नियम के अनुसार प्रातःकाल जल्दी उठा । ध्यान, स्वाध्याय, भगवत्पूजा से निवृत्त हो मुनि-वन्दन के लिए बाहर गया । मुनि-वन्दन के लिए महामंत्री भी आ रहे थे । दोनों रास्ते में मिले । कुशलक्षेम पूछा। महामंत्री और सुशर्मा — दोनों मुनि वन्दन के लिए उपाश्रय में गए। मुनि महाराज को विधिवत् वन्दना कर, कुछ क्षणों तक उपासना कर दोनों अपने-अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े ।
to आर्य सुशर्मा अतिथि - निवास के प्रांगण में पहुंचा, तब उसने देखा कि एक सुन्दर रथ खड़ा है । उसके मन में यह विचार उठा कि यह रथ किसका है. रथ खाली था. सारथी भी इधर-उधर नजर नहीं आया । इतने में ही गृहरक्षक ने आकर कहा--' आर्य ! देवी चन्द्रसेना आपके कक्ष में आपकी प्रतीक्षा कर रही
हैं ।'
आर्य सुशर्मा को आश्चर्य हुआ, किन्तु तत्काल उसे याद आ गया कि आज
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महाबल मलयासुन्दरी २१
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