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देवी का यहां आना निश्चित था, किन्तु इतनी जल्दी ! वह. तत्काल अपने कक्ष की ओर मया ।
उसने देखा कि देवी चन्द्रसेना और उनकी मुख्य परिचारिका विनोदा उस कक्ष में बैठी हैं।
चन्द्रसेना ने कलाकार का अभिवादन किया। ___ सुशर्मा ने कहा---'देवी ! मैं जानता था कि आप प्रथम प्रहर के बाद ही आएंगी।
'आपका सोचना यथार्थ है, पर मैंने सोचा कि दिवस के प्रथम प्रहर के बाद आपसे मिलने वाले अनेक लोग आते-जाते रहेंगे।'
नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है।"
कल महाराजा ने आपका जिस महत्त्वपूर्ण ढंग से स्वागत किया था, उससे आपको कला की प्रसिद्धि हुई है और अनेक व्यक्ति आपसे मिलने आ भी सकते हैं'-- चन्द्रसेना ने कहा ।
इतने में ही. अतिथिगृह के दो परिचारक दूध के तीन पात्र लेकर आ पहुंचे। तीनों ने दुग्धपान किया। विनोदा ने तांबूल तैयार किए । तीनों ने तांबूल लिये।
सुशर्मा ने कहा---'देवा ! तीन दिन बाद तो मुझे यहां से प्रस्थान करना ही होगा।'
'आप कैसे जाएंगे ?' 'मेरे पास एक अश्व है। 'अच्छा । पर आप इतना सामान कैसे ले जाएंगे ?'
'देवी ! मुझे जो कुछ उपहार में मिला है, मैं उसे यहीं वितरण कर दूंगा। साथ में उतना ही ले जाऊंगा, जितना अनिवार्य है, आवश्यक है । मैं धन कमाने के लिए यहां नहीं आया था। मैं तो केवल अपनी कला का परिचय देने आया था। मैं तो कल ही चला जाता, किन्तु मुझे आपकी छवि तैयार करनी है।'
'क्या वह छवि दो-तीन दिनों में तैयार हो जाएगी?' 'हां'।'
'फिर आप यहीं रुकेंगे कि नहीं? __ 'नहीं, क्या कोई मुसाफिर कहीं प्रतिबद्ध होता है'--कहकर सुशर्मा मुसकरा
दिया।
चन्द्रसेना उसके तेजस्वी वदन को देखती रही।
सुशर्मा क्षणभर मौन रहा । मौन भंग कर उसने कहा-'देवी! आपका चित्रांकन प्रारंभ करने से पूर्व यह आवश्यक होगा कि आप निरावरण रूप में मेरे समक्ष कुछ क्षणों तक रुकें, जिससे कि मैं आपकी छवि को मन में अंकित कर
२२ महाबल मलयासुन्दरी
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