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________________ मलया को अब पूरा निश्चय हो गया कि यह उसी का स्वामी है। भले ही मुझे कर्मों का अपार भोग करना पड़ा, भले ही मुझे सागर में तैरना पड़ा, भले ही मुझे मौत से जूझना पड़ा, अंत में मेरे स्वामी मुझे मिल गए। ओह ! इस अंधकार में मैं अपने स्वामी का मुंह कैसे देखू ? मलया को मौन देख, महाबल ने पुनः कहा- 'कोई बात नहीं है, तू अपना दुःख मुझे बताना नहीं चाहता, ठीक है । हमें इसी कूप में पड़े रहना होगा । बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं दीख रहा है।' महाबल के प्रश्न का उत्तर मलया दे, उससे पूर्व ही एक विशाल बिबी में कुछ प्रकाश-सा दीखा । वह प्रकाश बढ़ता गया। महाबल ने देखा कि उस बिंबी में से एक मणिधर नाग निकला है और वह अपनी मणि को एक ओर रख रहा है। इस दिव्यमणि के प्रकाश से कूप का अंधकार नष्ट हो गया। मलया ने इस प्रकाश में अपने स्वामी की ओर देखा... वह उठी और महाबल के दोनों हाथ पकड़कर बोली-'आप...' ____ महाबल चौंका-- इस तरुण को पहले कभी नहीं देखा था ''क्या यह पागल तो नहीं हो गया है ? वह बोला-'मित्र ! तू किसको ढूंढ़ रहा है ? तू अपना दुःख बता। दुःख बताने से हल्का हो जाता है।' 'ओह ! महाबल ! मेरे स्वामी 'आज मेरी आराधना सफल हुई "महाबल ! आप अपने थूक से मेरा तिलक मिटा दें।' महाबल चौंका । क्या मैं जिसे ढूंढ़ रहा था, वह मेरी प्राणप्रिया मलया मुझे मिल गई ? महाबल ने तत्काल अपने थूक से वह तिलक मिटाया और दूसरे ही क्षण दिव्य जड़ी-बूटी का प्रभाव क्षीण होने लगा''कुछ ही क्षणों में मलया मूल रूप में आ गई 'महाबल ने अत्यन्त प्रेम और स्नेह से प्रिया को बाहुपाश में बांध लिया। दोनों आपबीती सुनाने लगे। और मणिधर नाग अपनी मणि ले चला गया.''पुनः सघन अंधकार व्याप गया। __मलया और महाबल के वियोग का अंत आ गया था। दोनों बातें करते रहे और महाबल पुत्र-दर्शन के लिए उत्सुक हो उठा। धीरे-धीरे रात बीती। प्रातःकाल हुआ। सूर्योदय हो गया। मलया और महाबल ने ऊपर देखा। ऊपर प्रकाश दीख रहा था। उस प्रकाश में महाबल ने देखा, कुछ व्यक्ति कूप के भीतर झांक रहे हैं । कंदर्पदेव ने जोर से कहा—'मलया ! तू मूल रूप में आ गई है, यह जानकर प्रसन्नता हुई है। तेरा पति तुझे मिल गया, यह और प्रसन्नता की बात है। अब तुम दोनों बाहर निकलो। मैं दोनों के लिए दो ऊंचे-चौड़े बर्तन कूप में उतरवाता हूं। महाबल मलयासुन्दरी २८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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