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५४. विषधर
चाहने पर भी वर्षा नहीं आती और चाहने पर भी मौत नहीं मिलती। जब तक जीवनशक्ति प्रबल होती है, तब तक मौत निकट नहीं आती।
पुरुषवेशधारी मलया कूप की रेत पर जा गिरी। उसको कहीं चोट नहीं आयी। वह मात्र मूच्छित हो गई थी।
महाबल भी उसी कूप में गिरा था। उसको भी चोट नहीं आयी और वह मूच्छित भी नहीं हुआ। ___ वह अंधकार में हाथ से कुछ टटोल रहा था। तत्काल उसका हाथ मलया के शरीर पर लगा । मलया मूच्छित थी। महाबल बोला-'भाई ! तू कौन है ? इस प्रकार कूप में क्यों पड़ा ? तुझे क्या दुःख है ?'
किन्तु उत्तर कौन दे ?
महाबल का हाथ युवक के मुंह पर फिरने लगा। महाबल को लगा कि यह युवक जीवित है, श्वासोच्छ्वास चल रहा है। उसने कपाल पर हाथ फेरा ।
मलया को कुछ होश आने लगा। वह बेजान अवस्था में ही बोल पड़ी'महाबल ! मुझे क्षमा करना। तुम जहां कहीं भी हो, मेरी वंदना स्वीकार करना।' ___ महाबल बोला---'भाई ! तुम कौन हो ? किस महाबल को याद कर रहे हो ? तुम्हें क्या दुःख है ?'
मलया चौंकी...अरे, यह तो मेरे प्रियतम का ही स्वर है "मेरे स्वामी की आवाज'' 'क्या यह स्वप्न है या यथार्थ ?
अंधकार में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मलया ने पूछा---'आप कौन हैं ? यहां क्यों आए हैं ? इस नगरी के राजा के कोई चर तो नहीं हैं ?'
'भाई ! मैं भी तेरे जैसा ही एक दुःखी नौजवान हूं किन्तु तेरे जैसे मरना नहीं चाहता'मैं अपनी प्रियतमा की खोज में निकला हूं.'महीनों से खोज रहा हूं किन्तु मेरी हृदयेश्वरी कहीं नहीं मिली "फिर भी मैं निराश नहीं हुआ''तू क्यों इस कूप में गिरा है ? तू किस महाबल को याद कर रहा है ? २८६ महाबल मलयासुन्दरी
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