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मलया ने भोजन किया। राधिका चली गई।
मध्याह्न के समय खंड का द्वार भीतर से बंद कर मलया ने अपने केशकलाप में छिपाई हुई उस दिव्य जड़ी को निकाला। उसे आम्ररस में घिसा और नवकार मंत्र का स्मरण कर ललाट पर उसका तिलक किया।
वनस्पति अजेय शक्ति-संपन्न थी। तिलक का असर मर्मस्थान से आरंभ हुआ और वह समूचे शरीर में फैल गया।
लगभग अर्धघटिका के भीतर मलयासुंदरी का लिंग-परिवर्तन हो गया और वह एक रूपवान् नारी से सौम्य, सुंदर और तेजस्वी पुरुष बन गई । उसके उन्नत उरोज प्रचण्ड छाती में समा गये। उसका सौंदर्य खिल उठा और साथ ही साथ उत्तम पुरुष के लक्षण दृग्गोचर होने लगे।
मलया ने दर्पण में देखा। अपनी पुरुषाकृति को देखकर बोली- 'अब तू निर्भय हो गई है । अब चाहे महाराजा कंदर्पदेव आये या स्वयं कंदर्प (कामदेव) रूप धारण कर आ जाये तो भी वे कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।'
मलया ने पुरुषवेश धारण कर लिया और अपने स्त्रीवेश को उस पोटली में बांध दिया।
इस प्रकार वस्त्र बदलकर उसने उस दिव्य जड़ी को अपने केशों में बांध दिया और पगड़ी से केशकलाप को ढंक दिया।
परन्तु उसके सामने एक प्रश्न था, अब यहां से कैसे निकला जाये ?
उसने सोचा-अन्तःपुर से पुरुषवेश में निकलना जोखिम भरा प्रयत्न है।.. कोई देख ले तो मरम्मत हो सकती है। कोई चिन्ता नहीं परिणाम कुछ भी हो, शील की रक्षा अब सम्भव हो गई है। ___कुछ समय बीता । मलया पुरुषवेश में अपने खण्ड से बाहर निकली। इधरउधर देखा, सब निद्राधीन हो चुके थे । वह आगे चली। कुछ ही दूर जाने पर दो दासियां मिलीं और इस नौजवान को वहां देख चौंक पड़ी। यह तरुण युवक यहां कैसे आया होगा?
वे दोनों वापस मुड़ी और रानियों के पास जाकर उस दिव्य व्यक्ति के आगमन की बात सुनायी। वे दोनों दासियां महाराजा की रानियों की मुख्य दासियां थीं।
और एकाध घटिका के भीतर महाराजा कंदर्पदेव की आठों रानियां उस सुंदर नौजवान को देखने आ गईं। उनके साथ दासियों का समूह भी आ गया। पुरुषवेशधारी मलया को देख सभी स्त्रियों का हृदय आनन्द से नाच उठा। __ इस अंत:पुर में एक चिड़िया भी प्रवेश नहीं कर सकती, फिर यह तरुण कहां से आया?
रानियों के मन में यह प्रश्न नहीं उभरा । वे एकटक इस दिव्य तरुण को २७८ महाबल मलयासुन्दरी
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