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________________ आऊंगा." इतने समय के भीतर तुम अपने भविष्य का निर्णय कर लेना ।' मलया मौन रही । महाराजा चले गए। थोड़े समय पश्चात् राधिका आयी और बोली – 'देवी ! महाराजा की उदारता और प्रसन्नता की आप अवमानना न करें ।' 'राधिका ! यह प्रश्न मेरे जीवन का है । दासी के लिए जीवन के प्रश्न पर विचार करना शोभा नहीं देता। आज से तुम कभी मुझे ऐसी बात मत कहना ।' राधिका बोली- 'देवी! आप मुझे क्षमा करें। मैं केवल आपके प्रति उत्पन्न अपनी ममता के कारण ही ऐसा कह रही हूं । इसमें मेरा अपना कोई स्वार्थ नहीं है ।' 'दास-दासी अपने स्वामी की प्रसन्नता के लिए अपनी बुद्धि को नीलाम कर देते हैं ।' मलया ने कहा । राधिका ने सोचा- ' इस नारी को अपने रूप और यौवन पर गर्व है । कल यह गर्व चकनाचूर हो जाएगा । कंदर्पदेव की इच्छा का अवरोध आज तक कोई नहीं कर सका है ।' राधिका नमस्कार कर चली गई । मलया ने सोचा-तापसमुनि द्वारा प्रदत्त उस दिव्य औषधि का प्रयोग मुझे कल मध्याह्न में करना है। उसने आम्रफल संभालकर रख दिया । परन्तु एकाध प्रहर बीता होगा कि महाराज कंदर्पदेव का एक बंद रथ आया । उसके साथ चार सशस्त्र स्त्रियां भी थीं । उन्होंने राधिका को राजाज्ञा सुनाते हुए कहा - 'महाराजा की आज्ञा है कि देवी मलयासुन्दरी को लेकर आप सत्वर महाराजा के अन्तःपुर में आएं महाराजा मलयासुन्दरी को अपने पास ही रखना चाहते हैं ।' राधिका ने ये समाचार मलया को सुनाते हुए कहा - 'देवी ! आप मेरी बात मान लेती तो आज यह नौबत नहीं आती ।' 'राधिका ! कंचन को अग्नि में तपना होता है । यही उसकी शुद्धि है | तू तैयारी कर मेरा निश्चय अटल है ।' राधिका मलया की हिम्मत देख अवाक् रह गई और वह अपने वस्त्र लेने चली गई । मलया ने छिपाए हुए पुरुषवेश तथा अन्य कपड़ों की एक पोटली बांध ली। आम्रफल भी अपने पास रख लिया और कुछ ही समय पश्चात् वह रथ में बैठ राजभवन की ओर चली गई । राजभवन में एक सज्जित खंड में मलया की व्यवस्था की गई थी । मलया को लेकर राधिका उस खंड में गई । एक दासी भोजन का थाल ले आयी । राधिका ने कहा - 'देवी, आज भोजन आम्रफल के साथ कर लें ।' 'नहीं, राधिका ! मध्याह्न के बाद ही आम चूसूंगी ।' Jain Education International महाबल मलयासुन्दरी २७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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