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के फूलों से किया है। मैं दो दिन और रुक जाऊंगा''आप परसों दिन के प्रथम प्रहर में यहां आएं।'
'यहां...?
'हां, आपको मेरे समक्ष कुछ क्षणों तक खड़ा रहना पड़ेगा' 'मैं आपके निरावरण स्वरूप को अपने मानस-पटल पर अंकित कर लूंगा और फिर दो दिन की अवधि में वास्तविक यौवन का चित्र में प्रस्तुत करूंगा।'
'मैं धन्य हुई...' कहकर चन्द्रसेना ने सुशर्मा के दोनों हाथ पकड़ लिये ।
सुशर्मा ने कहा- 'देवी ! संसार में सबकी प्रार्थना टाली जा सकती है, किन्तु बहन और माता की बात को टाला नहीं जा सकता।' __चन्द्रसेना सुशर्मा के मुंह की ओर देखती रही।
महाबल मलयासुन्दरी १६
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