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________________ मलया ने तीन बार नवकार की स्मृति की। और सागारिक अनशन करते हुए कहा-'मुझे आशा, वांछा और पदार्थ-प्रयोग का तब तक प्रत्याख्यान है जब तक मैं मौत के मुंह से न बच जाऊं।' मलया का संकल्प सुनकर मत्स्य कांप उठा। सागर के विराट पटल पर रात्रि का अंधकार छा गया। रात्रि का अंधकार अपनी गति से फैल रहा था और मत्स्य अपनी पवनवेग गति से चल रहा था । अथाह जलराशि ! कहां है तट ! असीम की सीमा कहां ! रात्रि का पहला प्रहर बीत गया। अभी भी किनारे का अता-पता नहीं था। तीसरा प्रहर बीतने के पूर्व ही मलया मूच्छित होकर मत्स्य पर गिर पड़ी। मत्स्य वायुवेग से सागर में तैरता हुआ चला जा रहा था । मलया को तनिक भी कष्ट न हो, यह उसकी कोशिश थी। रात्रि का तीसरा प्रहर पूरा हो गया। ऊषा का प्रकाश सागर के जल पर छाने लगा। मत्स्य विशालकाय था। परन्तु अत्यन्त श्रम के कारण वह थककर चूर हो गया था। उसने सामने देखा, एक बंदरगाह दिखाई दिया। उसकी आंखों में श्रम की सार्थकता नाचने लगी। वह कुछ ही समय में उस बंदरगाह के किनारे पहुंच गया और किनारे पर जाकर एक गोता लगाया। मलया उसकी पीठ से नीचे गिर गई और लहरों के थपेड़ों से वह किनारे लग गई। मत्स्य स्थिरदृष्टि से देखता रहा। उसने संतोष की सांस ली और सागर में कहीं अदृश्य हो गया। सूर्योदय हुआ। उस नगरी का राजा अपने पांच-सात आदमियों को साथ ले भ्रमण करने निकला था। उसकी दृष्टि किनारे पर स्थित मानवदेह पर पड़ी। उसने अपने साथवालों से कहा-'देखो ! वहां क्या पड़ा है ?' एक व्यक्ति दौड़ा-दौड़ा वहां गया और मलयासुन्दरी को देखते ही चौंक पड़ा। उसने मलया की नाड़ी देखी नाक के पास हाथ रखा. "उसको निश्चय हो गया कि यह नारी अभी जीवित है। वह तत्काल राजा के पास आकर बोला--'कृपावतार ! कोई देवकन्या जैसी सुन्दर नारी सागर के थपेड़े खातीखाती किनारे आ लगी है, ऐसा प्रतीत होता है। उसका प्राण-दीपक अभी बुझा नहीं है।' 'क्या कहा? कोई तरुणी है ? सुन्दरी है ?' 'हां, महाराज !... महाबल मलयासुन्दरी २६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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