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जाता। इस ऊपर-नीचे की उड़ान में एक क्षण ऐसा आया कि भारंड पक्षी के पंजे की पकड़ कुछ ढीली हुई और मलया उसके पंजे से छिटक गई।
केवल आठ दस हाथ की दूरी पर ही अथाह समुद्र था।
मलया की काया मानो जल-समाधि लेने के लिए सागर की उत्ताल तरंगों का स्पर्श करने ही वाली थी...
मलया आठ-दस हाथ की ऊंचाई से सागर में गिरी। किन्तु उसी क्षण एक विशालकाय मत्स्य सागर की लहरों पर तैरता हुआ चला जा रहा था । मलया ठीक उसकी पीठ पर पड़ी।
यदि मत्स्य सागर में प्रवेश कर जाता तो मलया की वह इच्छा पूरी हो जाती कि सतीत्व की रक्षा के लिए उसने मौत का आलिंगन कर डाला है ।
किन्तु मत्स्य समुद्र की ऊपरी सतह पर ही तैरने लगा । मलया उसकी पीठ पर बैठी रही। और मत्स्य मलया को लेकर पवनवेग से एक दिशा में गतिमान हो गया। __मलया ने सोचा-क्या सागर की गोद में भी मुझे स्थान नहीं है ? उसने देखा मत्स्य तीव्र गति से चला जा रहा है।
सूर्य अस्तंगत हो रहा था। मलया ने मन-ही-मन सोचा-यह मत्स्य मेरे लिए नौका बना हुआ है, परन्तु यह कब तक मुझे लेकर चलता रहेगा ? मलया ने अस्तंगत होते सूर्य की ओर देखकर कहा--'ओ कर्मदेव ! मुझे क्यों बचाया ? सागर ने मुझे स्थान क्यों नहीं दिया ? क्या महाबल मुझे प्राप्त होगा?'
मलया के ये शब्द जातिस्मृति ज्ञान से संपन्न मत्स्य के कानों से टकराए और उसने अपनी गति धीमी कर मलया की ओर देखा।
मलया ने मत्स्य की ओर दृष्टि कर कहा--'मत्स्यराज ! एक दुःखी और असहाय नारी के प्रति आपकी आंखों में करुणा कैसे प्रकट हो गई ! मैं कल्याण की कामना से नमस्कार महामंत्र का अंतिम जाप कर रही थी 'मौत निश्चित थी 'आप बीच में क्यों आ गए ?'
मत्स्य सब कुछ सुन रहा था। किन्तु उसके पास वाणी नहीं थी। वह क्या उत्तर दे? परन्तु वह पूर्ण सावचेत था । मलया को तनिक भी कष्ट न हो, इस प्रकार वह किनारे की ओर अग्रसर हो रहा था 'परन्तु इस असीम की सीमा कहां है ?
मलया ने सोचा---'यह मत्स्य क्रीड़ा कर रहा है। संभव है यह अपने परिवार के सदस्यों के भोजन के लिए मुझे अपने स्थान पर ले जा रहा है । अथवा यह मुझे सागर में डुबोने के लिए क्रीड़ा कर रहा है. कुछ भी हो 'मौत अभी आ जाए या कुछ क्षणों के पश्चात्, मुझे इष्टदेव का स्मरण निरंतर करना चाहिए... .. संध्या का अंतिम प्रकाश विदा हो गया।
२६६ महाबल मलयासुन्दरी
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