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होना है, वह होगा मैं अपना मार्ग पकड़ लेती हूं ।'
ऊर्मिला भी खड़ी हो गई और उसने सागर में कूदने के लिए तत्पर मलया
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को बांहों में जकड़कर कहा - 'देवी ! करें। तेल देखें, तेल की धार देखें ही."
आपने इतना धैर्य रखा, अब जल्दबाजी न प्राण त्याग का अंतिम मार्ग तो हाथ में है।
मलया इसे अपने पूर्वभव का कर्म विपाक मानकर बैठ गई । आपत्तिकाल में पंच परमेष्ठी का जाप ही श्रेयस्कर होता है, यह उसके हृदय की आवाज थी । वह मंत्र जाप करने लगी ।
दो-एक घटिका के पश्चात् नौका यानपात्र तक पहुंच गयी । ऊर्मिला मलया को साथ लेकर वाहन पर चढ़ गयी ।
बलसार एक ओर छिपकर खड़ा था । वह मलया की ओर देख रहा था । ऊर्मिला मलया को साथ लेकर एक खंड में गयी । मलया ने देखा यानपात्र के उस खंड में एक दीपक जल रहा है। एक ओर छोटा पलंग बिछा हुआ है । एक ओर त्रिपदी पर जलपात्र पड़ा है और एक ओर नीचे गद्दी बिछी हुई है ।
मलया फर्श पर बिछी गद्दी पर जाकर बैठ गयी ।
मलया ने कहा---' ऊर्मिला ! मेरे साथ तूने छल न किया हो, पर मूर्खता अवश्य की है। किन्तु तेरा कोई दोष नहीं है । मेरे ही पाप कर्मों का यह विपाक है ।'
ऊर्मिला ने मन-ही-मन सोचा - स्वार्थ के लिए मैंने एक भयंकर अपराध कर डाला है, पर अब लाचार हूँ ।
यानपात्र गतिमान हुआ ।
मलया एक छोटे गवाक्ष के पास गई । ऊर्मिला अभी सो रही थी । प्रभात के सुखद समीर का स्पर्श हो रहा था ।
प्रभात हुआ ।
ऊर्मिला जाग गई । उसने मलया से कहा – 'देवी ! सेठजी साथ ही हैं । आप उनके मन में करुणा उत्पन्न करने का प्रयत्न करें ।'
'बलसार साथ में है ?'
'हां ।'
'मेरा पुत्र कहां है ?"
'संभव है वह साथ में ही हो । बलसार ने उसका नाम बलसुंदर रखा है।
अब आप बलसार के हृदय को बदलने का प्रयास करें ।'
मलया मौन रही ।
इतने में ही किसी ने खंड का द्वार खटखटाया ।
ऊर्मिला ने द्वार खोला । बलसार भीतर आया। उसने मलया की ओर
२५८ महाबल मलयासुन्दरी
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