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________________ लेकर ही प्रस्थान करना था, क्योंकि ऊमिला और मलया के लिए बलसार ने उत्तम वस्त्रालंकारों की सुन्दर व्यवस्था यानपात्र में पहले से ही कर रखी थी। ____एक-दो घटिका के बाद मलया और ऊर्मिला दोनों रथ में आकर बैठ गईं। रथ पवनवेग से चला। रात्रि का अंधकार व्याप्त हो चुका था। मलया के हृदय में रात्रि के अंधकार जैसा ही एक प्रश्न चक्कर लगा रहा था। ऊर्मिला के साथ कहां जाना है ? उसने रथ के बाहर झांका । उसे प्रतीत हुआ कि रथ निर्जन प्रदेश में जा रहा है।''वह नगरी की सीमा से बाहर निकल गया है, ऐसा लग रहा था। मलया ने प्रश्न किया—'बहन ! हम किस ओर जा रहे हैं ?' 'बंदरगाह की ओर...' 'बंदरगाह की ओर'''वहां क्यों ? "देवी ! आपके पुत्र को प्राप्त करने का यह अंतिम उपाय है "यदि यह उपाय नहीं किया गया तो पुत्र-प्राप्ति की आशा को सदा के लिए त्याग देना होगा।' 'किन्तु बन्दरगाह पर क्यों?' 'आज प्रात:काल सेठजी आपके पुत्र को यानपात्र में कहीं भेजने वाले हैं। पहले हम उस हृदयहार को प्राप्त कर लें, फिर हम यहां से भाग जाएंगे। मैं आपके साथ ही रहूंगी।' 'ओह !' कहते हुए मलया ने अपने दोनों हाथों से सिर को दबाया और रथ समुद्रतट पर पहुंच गया। वहां एक नौका पहले से ही तैयार खड़ी थी। ऊर्मिला मलया को साथ लेकर उस नौका में बैठी । और वह नौका यानपात्र की ओर गतिमान हुई। ___मलया के मन में यह आशंका पैदा हुई कि कहीं यह बलसार का षड्यन्त्र तो नहीं है। उसने ऊर्मिला से पूछा-'बहन ! मेरा मन कह रहा है कि यह बलसार की चाल है । तू मेरे साथ विश्वासघात तो नहीं कर रही है ?' ___ 'देवी ! सच-सच कह दूं ? सेठ बलसार आज आपका बलात् अपहरण कर ले जाने वाले थे.'आपको पीड़ा होती. 'वह मेरे लिए असह्य थी, इसलिए मैंने उन्हें वचन दिया था कि मैं स्वयं देवी को लेकर आऊंगी।' 'मुझे कहां ले जाना चाहता था ?' 'देवी ! मैं यह सब नहीं जानती। आप विश्वास करें कि मैं आपके साथ छाया की भांति रहूंगी।' ' 'तब मेरा पुत्र...' 'बलसार के पास है 'अब हमें वही प्रयत्न करना है।' ऊर्मिला ने कहा। मलया तत्काल नौका में खड़ी होकर बोली-'ऊर्मिला ! मेरे बालक का जो महाबल मलयासुन्दरी २५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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