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फिर दोनों कक्ष में आ गए। बलसार ने कहा- 'प्रिये ! चार-पांच दिनों के पश्चात् मुझे समुद्र - प्रवास के लिए जाना होगा ।'
'क्यों ?'
'महाराजा के लिए कुछ माल खरीदना है और वे मेरे सिवाय दूसरों पर इतना विश्वास नहीं करते । यदि मैं जाने से इनकार करता हूं तो संभव है वे कुपित होकर हमारी संपत्ति छीन लें ।'
'सागर - प्रवास में तो एक वर्ष बीत जाएगा ?'
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'नहीं, प्रिये ! बहुत दूर नहीं जाना है । आने-जाने में एकाध महीना लग सकता है और वहां रहने में एकाध महीना और लग सकता है ।'
' जैसी आपकी इच्छा ।' प्रियसुन्दरी ने कहा । रात बीत गई।
२५४ महाबल मलयासुन्दरी
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