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'उसका नाम बलसुन्दर रखा है और वह मेरी संपत्ति का स्वामी होगा। वह मेरे भवन में ही है। तेरी सेठानी की गोद इस प्रकार भर चुकी है और वह अत्यन्त प्रसन्न है।'
बलसार ऊर्मिला को और अनेक सूचनाएं देकर चला गया।
ऊर्मिला मलया के कक्ष में गई। मलया चिन्तामग्न बैठी थी। ऊर्मिला को देखते ही वह खड़ी हो गई और बोली- 'क्या है ?'
'आपके लिए भोजन सामग्री लायी हूं।'
'नहीं, मुझे इस दुष्ट व्यक्ति के घर का अन्न-जल नहीं लेना है। इतने दिन तू मेरी सखी के रूप में साथ रही, पर तूने मुझे पहले से सचेत नहीं किया ?
'देवी! आप त्वरा न करें। सब कुछ ठीक हो जायेगा। सेठजी तो आपको ताले में बंद कर चले गए थे। अभी-अभी जब वे आए तब मैंने बड़ी मुश्किल से चाबी ली है।' ___'ऊमिला ! मुझे कुछ भी खाना-पीना नहीं है । यदि मेरे प्रति तेरी तनिक भी सहानुभूति है तो मुझे यहां से मुक्त कर दे। शानदेव तेरा भला करेगा। मैं तुझे जीवनभर नहीं भूलूंगी।' ____ 'देवी! आप जल्दबाजी न करें। कल द्वार बंद थे। फिर भी आपने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सेठजी को जो तमाचा मारा था, वह मुझे बाहर सुनाई दिया था। आप जैसी तेजस्वी नारी का कौन बाल बांका कर सकता है ! आप यहां से चली जाएंगी तो पुत्र का क्या होगा? आप धैर्य रखें 'सेठजी मुझे अभीअभी कह गए हैं कि जब मलया अपने विचारों में परिवर्तन लायेगी तब ही उसे उसका पुत्र मिल सकेगा, अन्यथा नहीं। आपको समझाने का उत्तरदायित्व उन्होंने मुझे दिया है। आप धैर्य रखें। आप अपने विचारों पर दृढ़ रहें।'
मलया का हृदय पुत्र-प्राप्ति के लिए छटपटाने लगा।
उधर बलसार के भवन में कल्लोल नाच रहा था। बलसुन्दर को योग्य धायमाता मिल चुकी थी। इसलिए उसका रुदन बंद हो गया था और प्रियसुन्दरी उस बालक को क्षणभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देती थी। उसने उस बालक को आत्मज ही मान लिया था।
दो दिन बीत गए । बलसार अपने गुप्त भवन में आ पहुंचा। ऊर्मिला ऊपर के खंड में मलया के साथ बातें कर रही थी।
एक दासी ने सेठजी के आने का संदेश मिला को सुनाया। वह तत्काल खड़ी हुई वह बाहर आए, उससे पूर्व ही बलसार ऊपर आ गया।
ऊर्मिला मुड़ी। बलसार मलया के खंड में गया और बोला-'मलया ! ऊर्मिला ने तुझे सब कुछ बताया ही होगा।'
२५२ महाबल मलयासुन्दरी
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