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________________ प्राप्त हुआ है। 'कैसे मिला?' 'तू जानती है, कल मैं महाराजा से मिलने गया था। वहां से लौटते समय अशोक वनिका के पास मेरा रथ पहुंचा। वहां मेरे कानों में बालक के रुदन की आवाज आयी । मैंने रथ को रोका । मैं रोते हुए बालक के पास पहुंचा । वह एक वृक्ष के नीचे सो रहा था। आसपास कोई नहीं था. फिर भी मैं अर्धघटिका पर्यन्त चारों ओर देखता रहा, कोई नहीं आया। मैंने सोचा--कोई विधवा अथवा कुमारी व्यभिचारिणी अपना पाप छिपाने के लिए बालक को एकान्त में छोड़ चली गई है. अतः भाग्य का वरदान मानकर मैंने इस बालक को उठा लिया। अब इस बालक की तू ही माता है ''अब तुझे ही इसे संस्कारी बनाना है। मैं एक-दो दिन में किसी धायमाता की व्यवस्था कर दूंगा।' प्रियसुन्दरी सब कुछ भूल गई और वह बालक के मनमोहक चेहरे को देखने लगी। वह बोली--'निश्चित ही हमारा भाग्य फला है। इस बालक का नाम क्या रखें?' 'मेरे नाम के आदि के दो अक्षर और तेरे नाम के अन्त के तीन अक्षर...' 'क्या ऐसा नाम हो सकता है ? क्या यह बालिका है ?' 'बलसुन्दरी नहीं, बलसुन्दर ।' 'बहुत सुन्दर नाम ।' कहती हुई प्रियसुन्दरी ने बालक को हृदय से चिपका लिया। रोता-रोता बालक निद्राधीन हो गया। मध्याह्न के पश्चात् बलसार घर से निकला और सीधा अपने गुप्तगृह में आया और अपने खंड की चाबी ऊर्मिला को सौंपते हुए बोला-'ऊर्मिला ! तू मलया के विषय में सावचेत रहना। जब वह मेरी बनेगी तब ही अपने पुत्र को देख पाएगी, यह बात तू उसे समझाते रहना एक सप्ताह के बाद मैं सामुद्रिक यात्रा के लिए प्रयाण करूंगा। मैं तुझे और मलया को भी साथ ले जाना चाहता हूं। यदि इन सात दिनों के भीतर मलया मूझे स्वीकार कर लेती है तो मैं अपनी यात्रा स्थगित कर दूंगा।' ऊर्मिला बोली-'सेठजी ! किसी को बलपूर्वक अपना नहीं बनाया जा सकता । आप इस तथ्य को क्यों भूल रहे हैं ?' 'ऊर्मिला ! मैं तेरी बात बराबर समझ रहा हूं; परन्तु मैं तुझे किन शब्दों में बताऊं कि मैं मलया के बिना जी नहीं सकता। आज मैं जा रहा हूं। दो दिन बाद पुनः आऊंगा। मुझे लगता है, दो-तीन दिन में इसका आग्रह कम हो जाएगा। 'इसका पुत्र...' महाबल मलयासुन्दरी २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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