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________________ ४८. समुद्र-यात्रा की पृष्ठभूमि पति बलसार की प्रतीक्षा करती-करती प्रियसुन्दरी मध्यरात्रि में निद्राधीन हुई। आज उसके मन में अनेक विचार उमड़ रहे थे। उसने यह निश्चय कर लिया था कि अब वह कभी पतिदेव को रात्रि के समय घर से बाहर नहीं जाने देगी। जिस स्त्री को अपने पति के चरित्र के प्रति संदेह होता है उसकी मनोवेदना अत्यन्त तीव्र होती है। और मन में जो संशय प्रवेश कर जाता है वह शल्य की भांति निरंतर चुभता रहता है। ___अपने पति का चरित्र पवित्र नहीं है, यह बात प्रियसुन्दरी जानती थी।" पर भला वह कर ही क्या सकती थी ! अनेक बार उसे कड़वी बूंट पीनी पड़ती .''अब उसे पति का यह बरताव असह्य लगने लगा था। रात्रि के तीसरे प्रहर के अन्त में बलसार आ पहुंचा। उसके दोनों हाथों में मलया का बालक था और वह रो रहा था। ___अपने खंड में बालक का रुदन सुनकर प्रियसुन्दरी जागृत हो गई और वह बिछौने पर बैठ गई। दीपक के मंद प्रकाश में उसने देखा कि बलसार एक बालक को लिये खड़े हैं और वह बालक रो रहा है। प्रियसुन्दरी दो क्षण पर्यन्त अवाक् खड़ी रही । वह कुछ प्रश्न करे, उससे पूर्व ही बालक को पत्नी के हाथों में थमाते हुए बलसार बोला-'प्रिये ! आज भगवान् ने अपनी इच्छा पूरी की है।' 'किन्तु यह बालक है किसका ?' । 'तू इसके गौर वदन और तेजस्वी नयनों की ओर तो देख, ऐसा बालक देवदुर्लभ होता है। कहते हुए बलसार ने पत्नी के कंधे पर हाथ रखा । प्रियसुन्दरी ने बालक के गौर वदन की ओर निहारकर कहा- 'पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दें। आप यह बालक कहां से उठा लाये हैं? क्या यह आपकी किसी रखैल का तो नहीं है?' 'प्रिये ! क्या कह रही है ? पहली बात तो यह है कि तेरे रहते मैं किसी रखैल के पास आता-जाता रहूं, यह असंभव कल्पना है। यह बालक भाग्य से २५० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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