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पड़ेगा ।'
'मौत के सिवाय कोई दूसरा भयंकर परिणाम नहीं है और मुझे मौत का भय नहीं है ।'
बसार का कोध सीमा पार कर गया था । किन्तु एक ही तमाचे ने उसे दिन में तारे दिखा दिए थे दूसरी बार बलात्कार का प्रयत्न करने के लिए उसने सोचा, पर विचार बदल गया ।
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वह तत्काल पलंग की ओर बढ़ा और उस पर सो रहे बच्चे को लेकर खंड से बाहर आ गया । उसने कक्ष का द्वार बंद कर बाहर से ताला लगा दिया । मलया ने बंद द्वार के पास आकर गिड़गिड़ाते हुए कहा - 'सेठजी ! मेरा पुत्र मुझे लौटा दें।'
'जिस दिन तू अपनी इच्छा से मेरी बनेगी, उसी दिन तेरा पुत्र मिलेगा ।' जाते-जाते बलसार ने ऊर्मिला से कहा - 'मलया कहीं भाग न जाए, यह जवाबदेही तेरी है ।'
ऊर्मिला मौन रही ।
बालक रो पड़ा ।
बलसार रोते हुए बालक को लेकर रथ में बैठ अपने भवन की ओर चला
गया।
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महाबल मलयासुन्दरी २४६
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