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________________ सुशर्मा ! आप यथार्थ में कलाकार हैं: “महान् हैं आपके ये सारे चित्र देखकर.. 'क्या; देवी?' 'आपने इन चित्रों का अंकन किया है या 'यह संशय होना स्वाभाविक है।' 'इस संशय का तो कोई कारण नहीं है । आपके हृदय में यह संशय क्यों उत्पन्न हुआ? 'एक मनुष्य और वह भी अत्यन्त अव्यावहारिक और रूढ़, भला ऐसे सुन्दर चित्रांकन कैसे कर सकता है ? या तो उसके पास कोई देवशक्ति होनी चाहिए या फिर' ।' चन्द्रसेना अपना वाक्य पूरा करती, उससे पूर्व ही कलाकार ने हंसते हुए कहा-'देवी ! इस प्रकार की निर्मिति करने वाले कलाकार को व्यवहार से तो दूर ही रहना चाहिए । व्यवहार के बंधन में बंधा हुआ कलाकार कला की ऐसी आराधना कर ही नहीं सकता। आपका अनुमान सही है । मैं सर्वथा अव्यावहारिक हूं। मेरी पत्नी भी मुझे बार-बार कहती रहती है। अब देवी ! आप उस दूसरे कक्ष में चलें; मैं आपको दूसरे चित्र दिखाता हूं।' ___हां, कहकर चन्द्रसेना आसन से उठी और सुशर्मा के पीछे-पीछे उस खंड की ओर चल पड़ी। विनोदा भी साथ चलने के लिए उठी, परन्तु चन्द्रसेना के संकेत से वहीं बैठ गई। दूसरे कक्ष में जाकर कलाकार ने चन्द्रसेना को राजपरिवार के चित्र तथा अनेक प्राकृतिक चित्र दिखाए। चित्रों को देखकर चन्द्रसेना ने यह अनुभव किया कि ये चित्र निर्जीव नहीं हैं, ये तो जीवन्त चित्र हैं और इनमें भावनाओं के प्रकम्पन स्पष्ट दीख रहे हैं। चन्द्रसेना ने सारे चित्र देखे। उसका आनन्द उछालें भरने लगा। उसने कहा-'आर्य सुशर्मा ! मैं आपकी कला का वर्धापन किन शब्दों में करूं । किन्तु मैं अपने हृदय की मूक भावना आपके चरणों में चढ़ाती हूं।' यह कहकर चन्द्रसेना नीचे झुक गई। सुशर्मा तत्काल बोला-'देवी ! आप मुझे लज्जित न करें. "मैं तो कला का उपासक मात्र हूं''उपासक के लिए यह सम्मान शोभित नहीं होता।' 'प्रिय सुशर्मा ! यह मान नहीं, यह तो अन्तर की मौन कविता का उपहार है'; कहकर चन्द्रसेना खड़ी हो गई। 'देवी ! आपका चित्त प्रसन्न हुआ, यही मेरे लिए बड़े-से-बड़ा उपहार है।' चन्द्रसेना ने यौवन से मत्तदृष्टि का क्षेप करते हुए कहा-'मेरी एक प्रार्थना आपको स्वीकार करनी होगी।' 'देवी ! कहें ।' महाबल मलयासुन्दरी १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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