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________________ वह पास वाले खण्ड में गया और चन्द्रसेना से आकर बोला-'देवी ! मैं सबसे पहले आपको अपने सूक्ष्म चित्र दिखाता हूं।' उसने एक छोटी डिबिया खोली । उसमें से पन्द्रह चावल निकाले । उन्हें एक तश्तरी पर रखते हुए वह बोला-'देवी ! इन चावल के दानों पर मैंने विविध चित्र अंकित किए हैं । आप इन्हें इन खुली आंखों से नहीं देख पाएंगी। मेरे पास इनको दसगुणित बड़ा कर दिखाने वाला कांच है। आप उससे इन्हें देखें।' यह कहकर कलाकार ने पेटी से एक गोल कांच निकाला और चन्द्रसेना के हाथों में दिया । चन्द्रसेना ने व्यंग्य से हंसते हुए कहा—'इन चित्रों को देखने के लिए ऐसे कांच की खोज करनी पड़े तो फिर चित्र की महत्ता ही क्या रह जाती है ?' . - यह सुनकर सुशर्मा का हृदय व्यथित हो गया और वह प्रश्नभरी नजरों से चन्द्रसेना को निहारने लगा। चन्द्र सेना ने कांच के माध्यम से सारे चित्र देखे । वह अवाक् रह गई। उसने सोचा-चावल के दानों पर इतना सूक्ष्म और स्पष्ट अंकन करना महान कलाकार का ही कार्य हो सकता है । ''कैसा होगा कलाकार का वह हाथ और कैसी होगी वह तूलिका' 'कैसी होगी कल्पना और... सभी चित्रों का सूक्ष्म निरीक्षण कर लेने के पश्चात् चन्द्रसेना ने सोचा यह चित्रकार नहीं, कोई देव है। मनुष्य ऐसा कर ही नहीं सकता। इस कलाकार को गर्व करने और जगत को तुच्छ समझने का अधिकार है। चन्द्र सेना ने सुशर्मा की ओर देखा। कलाकार ने पूछा---'देवी ! आपको कौन-सा चित्र पसन्द आया ?' 'एक भी नहीं' 'मायाभरे हास्य से चन्द्रसेना ने कहा। 'एक भी नहीं !' सुशर्मा का स्वर मंद हो गया। कुछ दीखता ही नहीं, फिर अपनी पसन्द कैसे बताऊं...' विनोदभरे स्वर में चन्द्रसेना बोली। 'यह नयी बात है 'आपने कांच को ठीक से पकड़ा नहीं होगा' 'देखें, देवी !' यह कहकर सुशर्मा ने कुछ सिर नमाया । उसका मस्तक चन्द्र सेना के मस्तक से सहसा टकराया । चन्द्रसेना तत्काल बोल पड़ी, 'ऊंह'..!' 'क्यों?' __ 'निमित्तक कहते हैं कि जब दो मस्तक टकराते हैं तो विषाणयोग होता 'देवी ! क्षमा करें: 'मेरे से सावधानी नहीं रही. "अब आप कांच पर नजर टिकाएं और किसी भी चावल के दाने पर अंकित चित्र को देखें।' चन्द्रसेना ने सारे चित्र पहले ही देख लिये थे। कलाकार को व्यथित करने के ही लिए उसने ऐसा कहा था । वह प्रसन्न स्वर में बोली-'आर्य १६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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