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________________ 'सुन्दरी ! यह व्यवहार का प्रश्न नहीं है । तुझे देखकर देवता भी विचलित हो जाता है 'मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूं."तुझे और तेरे पुत्र को सुखी रहना है तो तू बाड़ लांघकर मेरे साथ रथ में बैठ जा।' ___ मलया के नयन सजल हो गए थे। बाड़ के बाहर उसका पुत्र रो रहा था। भूख के संताप से उसका चेहरा कुम्हला गया था। क्या करूं ! तापसमुनि भी नहीं हैं। वे संध्या के समय यहां पहुंचेंगे। उसने कांपते स्वरों में कहा—'मैं साथ चलती हूं। परन्तु अपने प्रसूतिकाल पूरा होने से पूर्व मैं तेरी किसी भी कामना की पूर्ति नहीं कर सकूँगी।' _ 'सुन्दरी ! मैं तेरी इच्छा पूरी करूंगा।' कहते हुए बलसार ने अपनी कमर पर बंधी तलवार को मूठ से बाहर निकाला और उससे थूहर की बाड़ को इधर-उधर कर मलया के लिए रास्ता कर डाला।'मलया को आगे कर, वह रथ के पास गया। रथ के पास जाकर बलसार बोला--'सुन्दरी ! रथ में बैठ जा।' 'नहीं, मैं पैदल ही रथ के पीछे-पीछे चलूंगी।' 'देवी ! तू बैठ जा। हम तेरी अस्पृश्य अवस्था को देखते हुए दोनों पैदल चलेंगे।' मलया रथ में बैठ गई। बलसार के कहने से साथी ने बालक को मलया को सौंप दिया। रथ गतिमान हुआ। आज कोई दिव्य संपत्ति प्राप्त हुई हो, इसी उमंग में बलसार और उसका साथी-दोनों रथ के पीछे-पीछे चलने लगे। महाबल मलयासुन्दरी २४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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