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४६. एक और विपत्ति
प्रसूतिकाल के चालीस दिन आंख के एक निमिष मात्र में बीत गए। ___गोदा वहां से विदा लेने मलया के पास पहुंची। उसके नयन सजल थे। मलया ने गोदा के चरणों में मस्तक झुकाकर कहा—'मां ! तुमने मेरा और मेरे शिशु का संरक्षण किया है। मैं तुम्हारे उपकार का प्रत्युपकार किसी भी प्रकार नहीं कर सकती। उसे मैं जीवन भर भुला नहीं सकती। निःस्वार्थ भाव से की जाने वाली सेवा का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। किन्तु मां, तुमको मेरी एक बात माननी होगी।'
गोदा ने मलया की ओर सजल नयनों से देखा।
मलया के पास केवल एक मुद्रिका थी। वह रत्नजटित थी. 'वह महाबल की स्मृतिचिह्न थी। मलया ने मुद्रिका देते हुए गोदा से कहा-'मां ! मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करो।'
मलया की भावना को आदर देती हुई गोदा ने बिना आनाकानी किए उस भेंट को स्वीकार कर लिया और उस मुद्रिका को अपनी अंगुली में पहन लिया।
तापसमुनि मलया की ओर देखकर बोले-'मलया ! मुझे भी वृद्धा मां के साथ जाना पड़ेगा 'संध्या से पूर्व में आ जाऊंगा' 'तू निर्भय रहना।'
मलया ने मस्तक झुकाकर स्वीकृति दी। तापसमुनि और गोदा वहां से प्रस्थित हुए।
अभी दिन का प्रथम प्रहर चल रहा था। वातावरण अत्यन्त रम्य और मनोहर था। मलया का पुत्र पास में लेटा हुआ था और हाथ-पैरों को ऊपर उछाल रहा था।
तापस मुनि और गोदा जब दृष्टि से ओझल हो गए तब मलया भीतर आयी और बच्चे को लेकर इधर-उधर घूमने लगी।
वह महाबल की स्मृतियों में खोयी हुई अनेक प्रकार के चिन्तन करने लगी।
उसने सोचा---स्वामी कब मिलेंगे, कोई पता नहीं है। किन्तु स्वामी की यह स्मति मेरे जीवन का निश्चित आधार बनेगी। इस बालक का भरण-पोषण
महाबल मलयासुन्दरी २३६
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