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यह सुनकर मलया चौंकी थी और कहा था - " क्यों की ? यदि मैं मर जाऊं तो ?”
'मलया ! तू मेरी पांख है । जब पांख टूट जाती है तब क्या पक्षी जीवित रह सकता है ? नयी पांख उसे नहीं गोदी जा सकती। ऐसा अमंगल कभी नहीं होगा और
- 'प्रियतम ! इतनी उतावली
'तो तेरी स्मृति ही हृदयगत भाव इन शब्दों में थी ।
बीच में ही मलया ने हंसते हुए कहा था- 'यदि हो जाए तो?' मेरे जीवन का सहारा बने ।' महाबल ने अपने व्यक्त किए थे और मलया तब उनसे लिपट गयी
यह बात मलया भूली नहीं थी आज बीस दिन का सिंहशावक गोद में पड़ा था, फिर भी मलया के हृदय में प्रियतम की यह बात वैसे ही क्रीड़ारत थी, इसलिए उसने चंद्रावती नगरी की ओर जाने का निर्णय लिया था ।
२३८ महाबल मलयासुन्दरी
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