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उसके मन में यह विचार आया कि चालीस दिन के बाद वह स्वयं पृथ्वीस्थानपुर चली जाए और राज-परिवार से मिले, प्रियतम से मिले । दूसरे ही क्षण उसने सोचा-जिस श्वसुर ने मुझ निर्दोष अबला के वध का आदेश दिया है, उसके घर कैसे जाऊं? नहीं-नहीं, मुझे नहीं जाना चाहिए। उससे अच्छा तो यह वन-प्रदेश है, जहां उतने भयंकर अन्याय की कल्पना भी नहीं की जा सकती। - नारी के हृदय में जैसे प्रेम और वात्सल्य का अथाह भंडार भरा होता है, वैसे ही अभिमान का भाव भी भरा होता है। यह स्वभावगत अभिमान उसे पृथ्वीस्थानपुर की ओर कदम बढ़ाने की अनुमति कैसे दे सकता है ? - मलया ने फिर सोचा-प्रसूति अवस्था के पूर्ण होते ही मुनि बाबा की आज्ञा लेकर मैं अपने पीहर चली जाऊंगी। यही उत्तम है।
तीव्र मनोमंथन के पश्चात् यह विचार दृढ़ बन गया। किन्तु मलया को यह ज्ञात नहीं था कि उसका स्वामी महाबल राज्यसुख का त्याग कर पत्नी की खोज में निकल पड़ा है।
महाबल नगर से बाहर निकलकर सीधा इसी वन-प्रदेश में आया था। आठ दिन तक वह वन के चारों ओर खोजता रहा, किन्तु मलया का कोई अस्तित्व-चिह्न उसे प्राप्त नहीं हुआ। फिर भी निमित्तज्ञ के कथन पर विश्वास कर प्रिया के मिलन की आशा से वह भूखा-प्यासा वन-प्रदेश में चक्कर लगा रहा था। ___ आठ दिन के बाद महाबल निराश होकर वन-प्रदेश के बाहर निकल गया और दूसरी दिशा में खोज करने चल पड़ा। दुर्भाग्य से एक दिन उसका अश्व चलते-चलते गिर पड़ा और गिरते ही तत्काल मर गया।
अश्व की मृत्यु से महाबल को अत्यन्त दुःख हुआ। किन्तु मलया से बिना मिले या उसके समाचार प्राप्त किए बिना नगर में लौटने का उसने दृढ़ संकल्प कर रखा था।
अश्व का सहारा छूट गया था। वह पैदल ही प्रवास करने लगा।
मलया को पता ही नहीं था कि उसका प्रियतम उसको ढूंढने के लिए दरदर का भिखारी बन रहा है।
मलया को बार-बार एक प्रतिज्ञा की स्मृति हो रही थी।
एक बार मलया महाबल के साथ शय्या पर बैठी थी। महाबल ने हंसते हुए कहा था---'प्रिय ! आज मैंने एक प्रतिज्ञा की है।'
'कैसी प्रतिज्ञा?'
'तेरे सिवाय किसी नारी को पत्नी न बनाने की प्रतिज्ञा मुनि महाराज के समक्ष की है।'
महाबल मलयासुन्दरी २३७
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