________________
प्रसवकाल निकट है। इसलिए यहां से पांच कोस की दूरी पर स्थित पल्ली से इस जानकार औरत को ले आया हूं।' __ मलया ने उस अधेड़ नारी की ओर देखकर पूछा-'मांजी! आपका नाम ?'
वृद्धा ने कहा-'मेरा नाम है गोदा।' 'गोदा मां ! सामने की झोंपड़ी में चलो।' मलया ने कहा । दोनों कुटीर में आ गईं। रात का समय।
मलया घास के बिछौने पर सो गयी। गोदा ने उसके पेट आदि को देखा। वह तत्काल वृद्ध तापस के पास जाकर बोली--'महात्मन् ! प्रसवकाल निकट है। संभव है रात्रि के अंतिम प्रहर में अथवा सूर्योदय के समय प्रसव हो जाएगा। सारा सामान तैयार है । मैं पूर्ण सजग हूं। आप चिन्ता न करें।'
मुनि ने गोदा को एक जड़ी देते हुए कहा-'गोदा ! जब तुझे लगे कि बिटिया को असह्य पीड़ा हो रही है, तब तू इस जड़ी को उसकी कमर के बांध देना । अन्यथा अपने पास ही रखना। इस जड़ी के प्रभाव से उसकी प्रसवपीड़ा शान्त हो जाएगी।'
सूर्योदय हुआ। मलया की पीड़ा बढ़ने लगी । गोदा ने तत्काल वह जड़ी मलया की कमर में बांध दी। उस औषधि के प्रभाव से मलया ने तत्काल सुखपूर्वक प्रसव कर दिया। सूर्य-जैसे तेजस्वी पुत्ररत्न का जन्म हुआ था।
बालक का पहला रुदन उपवन में फैल गया। तापस कुटीर के बाहर खड़े थे।
गोदा ने विधिपूर्वक सूतिकर्म संपन्न किया। वह बाहर आयी और मुनि बाबा से बोली--बाबा ! बहन ने मणि-जैसे तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया है।'
बाबा ने आकाश की ओर देखा। नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया और गोदा से कहा---'गोदा ! अब आगे का सारा कार्य तुझे ही करना है।'
गोदा नमस्कार कर चली गयी। देखते-देखते बीस दिन बीत गए।
तापस मुनि के द्वारा उपहृत औषधियों के प्रभाव से मां और पुत्र दोनों स्वस्थ रहे और मलया की प्रसूतावस्था सुखपूर्वक बीत गयी।
बीसवें दिन मलया कुटीर से बाहर आयी। सुन्दर और तेजस्वी पुत्र को देख उसने अपने दुःख को भुला दिया। उसने सोचा-काश ! यह पुत्र राजभवन में पैदा होता। परन्तु कर्म की गति विचित्र होती है। उसके आगे सबको झुकना पड़ता है। विपत्तियों का पहाड़ उस पर टूट पड़ा था, पर आज वह पुत्ररत्न पाकर आनंदित हो रही थी। २३६ महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org