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________________ वह अपने शयनकक्ष में गया, द्वार बन्द कर अपनी शय्या पर बैठ गया। उसन माता-पिता को संबोधित कर एक लम्बा पत्र लिखा और यह स्पष्ट कर दिया कि वह मलया की खोज के लिए अकेला ही जा रहा है। उसकी कोई चिन्ता न करें और वह मलया को लेकर अवश्य ही आ जाएगा। पत्र को खंड में रखकर वह रात्रि के चौथे प्रहर में उठा। अपनी तलवार धारण कर उसने कुछ मुख्य आभूषण पहने, कुछ दिव्य गुटिकाएं, अंजन, तिलक आदि साथ ले वह महल से अकेला ही निकल पड़ा। वह सीधा अश्वशाला में गया । अश्वशाला के रक्षक ने युवराजश्री को आते देखा। प्रणाम कर वह एक ओर खड़ा हो गया। महाबल ने अस्तबल से अपनी पसन्द का अश्व निकाला और उस पर चढ़कर कुछ ही क्षणों में नगर से बाहर आ पहुंचा। सूर्योदय हुआ। एक प्रहर दिन बीत गया। युवराजश्री शयनकक्ष से बाहर नहीं आए; यह जानकर चारों ओर कोलाहल होने लगा। महाराजा और महादेवी तक बात पहुंची। इतने में ही परिचारक ने आकर कहा-'राजेश्वर ! युवराजश्री की शय्या पर एक ताड़पत्र पड़ा है।' 'जल्दी ले आओ उसे।' महाराजा ने कहा। वह दौड़ा-दौड़ा गया और ताड़पत्र लाकर महाराजा के हाथ पर रख दिया। महाराजा ने आद्योपान्त उसे पढ़ा । महादेवी को सुनाया। माता सुबक-सुबककर रोने लगी। महाराजा के नयन भी सजल हो गए। एकाकी पुत्र इस प्रकार चला जाए, यह घटना माता-पिता के लिए असह्य होती है। पुत्रवधू के प्रति किए गए अन्याय का दर्द हृदय को विदीर्ण कर ही रहा था, पुत्र-वियोग का दर्द भी उसके साथ और जुड़ गया। कल आशा का दीप जला था, आज वह बुझ गया। यह समाचार सारे नगर में फैल गया। २३४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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