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________________ है कि आपके गले में जो मोतियों का हार है उसमें कितने मोती हैं ? आपके इस हार में एक सौ इकहत्तर मोती हैं।' ऐसी गिनती पहले किसी ने नहीं की थी। महाबल ने हार में पिरोये हुए मोती गिने और कहा--'महात्मन् ! आपने ठीक बताया। ____'अब आपके हृदय को व्यथित करने की पीड़ा के विषय में कुछ कहता हूं। आप ध्यान से सुनें ।' आचार्य ने पुनः गणित किया। फिर बोले-'कुमारश्री ! आपका प्रश्न है कि पत्नी जीवित है या नहीं ?' 'ठीक है, आचार्यदेव ! मुझे आप इस प्रश्न का उत्तर दें 'अन्न-जल का प्रत्याख्यान किए तीन दिन बीत रहे हैं।' निमित्तज्ञ ने कहा---'आपकी पत्नी जीवित है।' महाराजा ने तत्काल प्रसन्न स्वरों में कहा—'जीवित है ?' 'हां, महाराज ! जीवित है और...' निमित्तज्ञ ने पुनः गणित किया और कहा---'उनका नाम सिंह राशि पर है।' 'हां, मेरी पुत्रवधू का नाम मलयासुन्दरी है।' महादेवी ने कहा। महाबल बोला-'आचार्यदेव ! आपने मेरे मन में शक्ति का संचार किया है। अब आप बताएं, वह कहां है ?' . निमित्तज्ञ बोला---'कुमारश्री ! मैं यह नहीं बता सकता कि वे कहां हैं। किसके आश्रम में हैं ? किन्तु इतना निश्चयपूर्वक कह सकता हूं कि वे जीवित हैं। प्रसवकाल निकट है और वे एक पुत्ररत्न को जन्म देंगी।' यह सुनकर सबके मन प्रसन्न हो गए। निराशा के सघन अंधकार में आशा की एक किरण फूट पड़ी। महाबल बोला-'महात्मन् ! मेरी प्रियतमा मुझे मिलेगी या नहीं ? 'अवश्य मिलेगी, पर कब, यह मैं नहीं बता सकता।' ___ महामंत्री तथा महादेवी ने अनेक प्रश्न किए । परन्तु वृद्ध निमित्तज्ञ ने इससे आगे कुछ भी नहीं बताया। महाराजा ने निमित्तज्ञ को पुष्कल पुरस्कार दिया और आचार्य नेमीचरण सबको आशीर्वाद देकर चले गये । माता-पिता ने महाबल को भोजन कराया और फिर दोनों ने भोजन किया। महाबल के हृदय में सन्तोष की लहर उठी और उसने सोचा--'मलया जीवित है और अब शीघ्र ही मां बनने वाली है, पर वह है कहां? कहां ढूंढू ? मुझे स्वयं को उसकी खोज में चल पड़ना चाहिए। मुझे अपने कर्तव्य को निभाने के लिए तैयार रहना है।''इस प्रकार अनेक संकल्प-विकल्प उसके मन को कुरेदने लगे। उसने मन-ही-मन एक निश्चय किया। महाबल मलयासुन्दरी २३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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