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________________ प्रमाण चाहें तो आप लघु खंड में जाकर देख लें। इस दुष्ट स्त्री ने ही राक्षसी का रूप धारण कर आपको भ्रम में डाला था।' महाराजा ने कनकावती की ओर वेधक दृष्टि से देखकर कहा---'सत्य बात बता दे।' कनकावती ने गिड़गिड़ाते हुए कहा-'महाराजश्री! मेरा अपराध क्षमा करें"कृपावतार ! पुराने वैरभाव के कारण ही मैंने ऐसा कर डाला 'आप अपनी पुत्रवधू को बुलाएं. 'मैं उससे क्षमा याचना कर लूंगी। मैंने ही राक्षसी का रूप धारण किया था। उस समय युवराज्ञी सो गई थी. 'आप जब अपने सुभटों को साथ लेकर यहां आए तब मैं छिप जाने के लिए इस लघु खंड में आ गई थी और मैंने ही युवराज्ञी को द्वार बंद करने के लिए कहा था ''आप मुझे क्षमा करें।' ___ महाराजा सुरपाल अपने कपाल पर हाथ पटकते हुए वहीं बैठ गए—अरे ! मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा भयंकर अन्याय नहीं किया था। इतनी उतावली भी नहीं की थी। फिर यह सब कैसे घटित हो गया? उन्होंने महाबल की ओर खकर कहा-'महाबल ! मुझसे गंभीर अन्याय हो गया है । तू मुझे क्षमा कर।' २३० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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