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________________ मलया ने मस्तक नत कर स्वीकृति दी । तापसमुनि अत्यन्त प्रसन्न हुए । मलया कुटीर में गई। अंदर अंधकार था । तापस मुनि ने कहा - 'बेटी ! मैं अभी प्रकाश का साधन ले आता हूं ।' तापस मुनि अपने कुटीर में गए और एक जलती हुई पतली लकड़ी लेकर आए । उन्होंने कहा - 'बेटी ! यहां दीया तो है नहीं । यह 'अग्निव्हा' नामक दिव्य वनस्पति की लकड़ी है । यह पूरी रात जलती रहेगी और मंद-मंद प्रकाश देती रहेगी' - यह कहते हुए मुनि ने उस लकड़ी को मिट्टी के एक बर्तन में रख दिया । 'बेटी ! अंधकार कुछ कम तो हुआ हैन ?' 'हां, महात्मन् !' 'यहां मेरे पास न बिछौना है और न चादर फिर भी मैं तेरे लिए घास की शय्या तैयार कर देता हूं तुझे किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी । दो वल्कल दूंगा । एक को ओढ़ लेना और एक को घास पर बिछा लेना ।' 'कृपावंत ! मेरे जैसी अभागिन के लिए आप इतना कष्ट क्यों कर रहे हैं ? यह कुटीर अत्यन्त स्वच्छ है "मैं एक ओर सो जाऊंगी।' 'नहीं, बेटी ! तुझे जननी बनना है. "त्यागियों के मन में दुःखी प्राणियों के प्रति सहज सहानुभूति होती हैं ।' कहते हुए तापसमुनि कुटीर के बाहर आ गए । लगभग एक घटिका के पश्चात् वे घास लेकर आए। उसकी शय्या तैयार कर वहां दो वल्कल रख दिए । जाते-जाते वे बोले-- 'मलया ! अब तू आराम कर कुटीर का द्वार अन्दर से बंद कर देना । नवकार मंत्र का स्मरण कर सो जाना ।' इस प्रकार वात्सल्य, धैर्य और आश्रय देकर मुनि चले गए मलया ने कुटीर का द्वार बंद किया। वह उस तृणशय्या पर सो गई । जहां रत्नजटित पर्यंक और रेशमी गद्दों की भरमार रहती थी, वहां आज मात्र एक तृणशय्या | फिर भी आज यह तृणशय्या उन पर्यंकों से उत्तम थी । मलया ने संकल्प-विकल्पों से मुक्त होकर नवकार महामंत्र का जाप किया और वह कुछ ही क्षणों में निद्राधीन हो गई । Jain Education International महाबल मलयासुन्दरी २२५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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