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में पदचाप सुनाई दिए । उसने चौंककर सामने देखा - एक वयोवृद्ध तापसमुनि आ रहे थे ।
मलया खड़ी रह गई पर उसमें खड़े रहने की शक्ति नहीं थी वह नीचे बैठ गई ।
तापसमुनि निकट आकर बोले--- 'ओह, मां ! तू इस घनघोर अटवी में कहां से आ गई? क्या तेरे साथी बिछुड़ गए हैं ?"
मलया ने तापसमुनि को प्रणाम किया । वह बोली- 'महात्मन् ! कर्मविपाक के कारण विपत्ति में फंसी हुई मैं एक अबला हूं । निरापद स्थान की खोज में चलते-चलते थक गई हूं।'
'अरे पुत्री ! अब तू आश्वस्त रह । अब घबराने की कोई बात नहीं है । सामने मेरा आश्रम है । अपने आश्रम में मैं अकेला ही हूं परन्तु तुझे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होगा स्वच्छ भूमि "निरापद स्थान और कुछ ही दूरी पर - राजमार्ग है । तू उठ और मेरे पीछे-पीछे चली आ ।'
मलया ने सोचा- 'पूर्व जन्म में घोर पाप करते समय कहीं कुछ शुभ कार्य -भी हुआ है, अन्यथा जहां पग-पग पर मौत का आभास होता है वहां ऐसा निरापद स्थान कहां से प्राप्त होता !'
वह उठी ।
तापस ने उसकी ओर देखकर कहा - 'पुत्री ! तू तो गर्भवती है ?" 'हां, महात्मन् !'
'ओह ! तेरे साथी अवश्य ही भाग्यहीन होंगे ——— तुझे अकेली इस भयंकर वन 'में छोड़कर चले गए ।' कहते हुए तापस मुनि आगे चले ।
मलया भी तापस मुनि के पीछे-पीछे चल पड़ी ।
आकाश में अंधकार व्याप्त हो चुका था । रात्रि का प्रथम प्रहर प्रारंभ हो गया था। कुछ ही समय पश्चात् मलया एक छोटे, किन्तु सुन्दर उपवन में आ पहुंची। उसने देखा, उपवन के एक ओर दो कुटीर हैं ।
तापसमुनि कुटीर की ओर आगे बढ़ते हुए बोले- 'पुत्री ! तेरा नाम ?' 'मलयासुन्दरी ।'
'जैसा तेरा नाम है वैसी ही तू सौम्य और पवित्र है इस कुटीर में तू
- आनंदपूर्वक रह । अरे, तूने कुछ खाया - गीया भी नहीं होगा ?'
'नहीं, महात्मन् ! मुझे भूख का भान भी नहीं रहा ।'
'तू उस कुटीर में जाकर बैठ । मैं तेरे लिए फल ले आता हूं ।' 'महात्मन् ! कष्ट न करें । मुझे रात्रिभोजन का प्रत्याख्यान है ।' मलया ने संकोच करते हुए कहा ।
'अच्छा'' तब तो तू जिनेश्वर देव के मार्ग की आराधिका है ?'
२२४ महाबल मलयासुन्दरी
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