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नदी की टोह में चली । मंत्रजाप चलता रहा ।
मन में विषाद था, पर हर्ष भी उछल रहा था । मातृत्व की कल्पना उसमें आनन्द भर रही थी । उसने अनेक कल्पनाएं पहले भी की थीं। कुमार ही उत्पन्न होगा, यह भविष्यवाणी अनेक बार हो चुकी । मलया सोने का पालना, रेशम के गद्दे आदि-आदि साधनों से संपन्न कक्ष में पुत्रोत्सव की कल्पना संजोए हुए थी । पुत्रोत्पत्ति के अवसर पर राज्य में क्या होगा, महाबल कितने आनन्दित होंगे, इस विषय में सोचकर मलया आनन्दविभोर हुई थी ।
परन्तु आज उसकी सारी आशाओं पर तुषारापात हो गया । भयंकर वन, अनेक हिंस्र पशुओं का आवागमन मलया अजस्र चल रही थी । न मार्ग था, न पगडंडी थी । वह धीरे-धीरे, संभल-संभलकर पैर रखती हुई आगे बढ़ रही थी । उसे ही क्या, किसी को ज्ञात नहीं था कि वह किस दिशा की ओर जा रही है।
रथ में लम्बे समय तक बैठे रहने के कारण उसका शरीर अकड़ गया था । गर्भ का नौवां मास चल रहा था। तेजी से चलना असंभव था । वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी । उसे पता नहीं था कि वह वन के गहन प्रदेश की ओर आगे बढ़ रही
। वह केवल महामंत्र का जाप निरंतर कर रही थी। जहां कहीं थकावट का अनुभव होता, वह क्षण भर खड़ी रह कर पुनः यात्रा प्रारम्भ कर देती ।
चलते-चलते सूर्यास्त की बेला होने लगी । एक ओर गाढ़ वन- प्रदेश, दूसरी ओर सूर्यास्त का होना, भयंकर अंधकार छाने लगा ।
मलया थककर चूर हो गई थी । उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि या तो वह गिर पड़ेगी या मूच्छित हो जाएगी ।
वह आगे चली । कहीं सुरक्षित स्थान जैसा नहीं दीखा। वह चलती रही । कुछ दूर जाने पर उसे कल-कल ध्वनि सुनाई दी । वह कुछ आश्वस्त हुई । निराशा में आशा की एक किरण उछल पड़ी ।
कुछ ही दूर चलने के पश्चात् उसने देखा कि सामने एक नदी बह रही है । छोटा किन्तु सुन्दर मैदान है "सूर्यास्त अभी तक हुआ नहीं था वह त्वरित गति से आगे बढ़ी और सूर्यास्त होने से पूर्व नदी पर पहुंच गई स्वच्छ और निर्मल जल बह रहा था। पास में कोई पात्र था नहीं । उसने अंजली से पानी पीकर तृषा शांत की। उसका नियम था कि सूर्यास्त के पश्चात् कुछ भी न खाना और कुछ भी न पीना ।
सूर्यास्त हो गया था ।
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मलया वहीं बैठ गई । उसने हाथ मुंह धो स्वस्थता का अनुभव किया । उसने निरापद स्थान की खोज में चारों ओर देखा ।
वह वहां से उठी और वृक्ष के नीचे रात बिताने के लिए बड़े वृक्ष को देखने लगी। एक वृक्ष दीख रहा था। वह उस ओर चली । आगे बढ़ते ही उसके कानों
महाबल मलयासुन्दरी २२३
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