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________________ ४२. तृणशैया भयंकर अटवी को देखकर मलयासुन्दरी कांप उठी। उसने सुभटों से कहा'भाई ! मुझे यहां क्यों ले आए हो?' 'देवी ! महाराजा सुरपाल की आज्ञा से हम आपको यहां ले आए हैं। महाराजा की आज्ञा है कि भयंकर अटवी में आपका वध कर दिया जाए।' एक सुभट ने कहा। 'वध ?' 'हां, देवी''आपको कुछ कहना हो तो कहें और अपने इष्ट का स्मरण कर मरने के लिए तैयार हो जाएं।' सुभट ने कहा । मलयासुन्दरी यह आदेश सुनते ही रो पड़ी । अरे, कर्म की कैसी विचित्र गति है ! मेरे स्वामी मेरे अपने हित के लिए मुझे राजभवन में अकेली छोड़कर गए और कर्म का अट्टहास उभरने लगा किन्तु मैंने किसी का अकल्याण नहीं किया है. 'अरे ! महाराजा के मन में मेरे प्रति यह भावना कैसे पैदा हुई ? विचारों से संग्राम करती हुई मलया ने अपने आंसू पोंछे । उसने अतिकरुण स्वर में कहा-'आप महाराजा की आज्ञा का पालन करें। यदि आप कुछ जानते हों तो मुझे बताएं कि महाराजा ने मेरे किस अपराध का यह दंड दिया मलयासुन्दरी के करुण स्वर सुनकर सुभटों का दिल दहल उठा। उन्होंने सोचा-यह तो तेजस्विनी, पवित्र और अति-संस्कारित नारी है और सगर्भा है। देवी निर्दोष है। सभटों को मौन देखकर मलयासुन्दरी बोली-'आप यदि नहीं जानते अथवा जानते हए भी नहीं कहना चाहते तो कोई बात नहीं। आप अपना कार्य पूरा करें। वहां पहुंचकर आप मेरे पूज्य श्वसुर और सास को बताएं कि आपकी पुत्रवधू ने क्षमायाचना की है। उसे दोष की जानकारी नहीं है, फिर भी आपने जो दंड दिया है वह मेरे लिए हितकारी ही होगा । और सुभटो ! जब मेरे स्वामी आएं तो उन्हें कहना कि वे मुझे सदा के लिए भूल जाएं और दूसरी कोई राजकन्या महाबल मलयासुन्दरी २२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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