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इस प्रकार विजय प्राप्त कर महाबल ने कल प्रातःकाल वहां से पृथ्वीस्थानपुर की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया। उसका हृदय प्रियतमा से मिलने के लिए छटपटाने लगा।
महाबल के हृदय में उल्लास था... और मलया का हृदय चिन्ताओं की चिता में जल रहा था। मध्याह्न हुआ। रथ को रोका।
मलया ने सोचा-अश्व थक गए होंगे। कोई जलाशय आ गया होगा, इसलिए रथ को रोका गया है।
रथ से दोनों सुभट नीचे उतरे।
मलया भी बैठे-बैठे अकड़ गई थी। उसने पर्दा उठाकर देखा, चारों ओर वनही-वन था। __ वह नीचे उतरने के लिए उठी, उससे पूर्व ही एक सुभट बोला-'देवी ! आप नीचे उतरें । जहां जाना है, वह स्थान आ गया है।'
मलया के हृदय को ये शब्द अग्नि में तप्त शलाका जैसे चुभने लगे।
इस घोर वन में क्यों ? वह नीचे उतरी। उसने देखा, दोनों सुभट अत्यन्त उदास खड़े हैं। लगता है वे भयंकर वेदना भोग रहे हैं।
२२० महाबल मलयासुन्दरी
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