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________________ 'हां, अभी।' . 'किस ओर, पिताश्री? कहती हुई मलया के हृदय में अनिष्ट आशंका उत्पन्न हुई कि क्या महाबलकुमार किसी विपत्ति में फंस गए हैं ? 'पुत्री ! यह सब चर्चा मार्ग में होगी। अभी एक क्षण का विलंब सह्य नहीं होगा।' राजा ने कहा। मलया बोली--'मैं तैयार हूं।' . 'तो नीचे चल'रथ तैयार होकर आ गया होगा 'तुझे कुछ साथ में लेना हो तो...' 'नहीं, मेरा चित्त स्वामी के विषय में अनेक आशंकाएं कर रहा है। मैं एक क्षण का भी विलंब नहीं कर सकती।' कहती हुई मलयासुंदरी कक्ष से बाहर आ गई। ___ महाराजा ने सुभट से कहा- 'कक्ष को बंद कर ताला लगा दो 'सभी दासियों को मेरे अन्तःपुर में भेज दो और इस खण्ड को बंद कर दो।' मलया बाहर ही खड़ी थी। वह कुछ भी नहीं समझ सकी। उसके हृदय में विचारों की उथल-पुथल हो रही थी। विचारों का संघर्ष अति भयंकर होता है । सुभट ने उस खंड के सारे द्वार बंद कर, बाहर से ताला लगा दिया। मलया को भी स्मत नहीं रहा कि उस लघु खंड में अपरमाता कनकावती है। सभी नीचे आए। रथ तैयार खड़ा था। महाराजा ने रथचालक को एक ओर बुलाकर कहा-'मलयासुंदरी को घोर वन में ले जाना है और वहां उसका वध करना है। यदि वह कुछ पूछे तो मार्ग में कुछ भी नहीं बताना है। यह मेरी आज्ञा है।' दो सुभट रथ के आगे के भाग में बैठ गए। इन दोनों में एक को रथचालक का काम भी करना था, इसलिए मूल रथचालक नीचे उतर गया। ... वहां खड़े अन्य व्यक्ति अवाक् रह गए। मलया रथ में बैठी और रथ गतिमान हो गया। . मलया का आठवां मास पूर्ण हो गया था, नौवां मास चल रहा था और उसे इस प्रकार राजभवन से निकलना पड़ा। उसे कुछ भी ज्ञात नहीं हो रहा था। रथ नगरी के बाहर निकल गया, अंधकार व्याप्त था। रात्रि अभी अवशिष्ट थी। तीसरा प्रहर बीतने वाला था। कुछ प्रभावी हवा के झोंके आ रहे थे। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। उनका अस्तित्व अब विलीन होने ही वाला था। मलया अकेली थी रथ में। उसका मन विचारों से भर गया। वह अपने २१८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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