________________
को उछालती हई नाचने लगी।
सामने के मकान में राजा अपने सुभटों के साथ यह सारा दृश्य देख रहा था।
उसने देखा निश्चित ही कोई राक्षसी है और नग्न होकर नृत्य कर रही है 'बार-बार वह दोनों हाथों को उछालती है और मुंह से आग बरसा रही है।
अपनी पुत्रवधू का यह रूप देखकर महाराजा सुरपाल अत्यन्त व्यथित हो गए। उन्होंने सोचा, जिसको मैं संस्कारी और उत्तम कुल की राजकन्या मानता था, तेजस्वी पुत्रवधू मिलने का मुझे सात्विक गर्व था, वह क्या इतनी नीच और भयंकर होगी?
राजा यह दृश्य लंबे समय तक देख नहीं सका 'वह तत्काल युवराज के कक्ष में जाने की सोचने लगा।
रानी कनकावती ने देखा राजा और सुभट इसी ओर आ रहे हैं, तब वह मलया के पास जाकर बोली--'महाराज इस ओर आ रहे हैं। संभव है मुझे इस वेश में देखकर वे अत्यन्त रुष्ट हो जाएं 'बेटी ! मैं छोटे कक्ष में जा रही हूं, तू बाहर से सांकल लगा देना।'
'ठीक है परन्तु आपने ऐसा रूप क्यों बनाया है ?'
'तेरे कल्याण के लिए 'राक्षसी सदा-सदा के लिए परास्त होकर चली गई है । अब भय का कोई कारण नहीं है।' कहती हुई कनकावती लघु खण्ड में चली गई। मलया ने बाहर से उस खंड का द्वार बन्द कर दिया। ___इतने में ही महाराज अपने सुभटों को साथ लेकर आ पहुंचे। उन्होंने द्वार को खटखटाया।
मलया ने पूछा--'कौन ?' एक सुभट बोला---'द्वार खोलो। महाराजा आए हैं।' मलयासुंदरी ने तत्काल द्वार खोल दिया।
पांच सुभटों को साथ ले महाराजा खंड में आए और मलया को मूलरूप में देखकर विस्मित हो गए। यह रूपवती नारी कितनी मायाविनी और जादूगरनी है । थोड़े समय पूर्व क्रूर राक्षसी थी और अब विनीत पुत्रवधू बन गई है।
मलया ने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए पूछा---'क्या आज्ञा है, पिताश्री ! मध्य रात्रि में आप कैसे पधारे? क्या युवराजश्री के कोई समाचार आए हैं ?'
राजा ने सोचा-चर्चा करने से बात बढ़ेगी और राज-परिवार की निंदा होगी, इसलिए उन्होंने शांत स्वर में कहा-'बेटी ! अभी तुझे यहां से रथ में बैठकर प्रस्थान करना है।'
'अभी?'
महाबल मलयासुन्दरी २१७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org