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४१. घोर अरण्य में
रात्रि का दूसरा प्रहर चल रहा था। कनकावती ने मलया को सोने के लिए आग्रह करते हुए कहा---'पुत्री ! तू सो जा। मुझे तो मंत्र-तंत्र के साथ उस राक्षसी से लड़ना है । इस स्थिति में तू उसे देखे, यह उचित नहीं है। एक बात और है कि तू गर्भवती है। राक्षसी की छाया भी तेरे शरीर पर नहीं पड़नी चाहिए, इसलिए तू सो जा । यदि आवश्यकता होगी तो मैं तुझे जगा दूंगी।'
मलया को अपरमाता के कथन में स्वयं का हित ही दीखा । सज्जन व्यक्ति सबको अपने-जैसा ही मानते हैं। मलया के हृदय में यह कल्पना भी नहीं आयी कि कनकावती ने एक भयंकर षड्यन्त्र रचा है । यदि उसका यह षड्यन्त्र सफल हो जाए तो मलया को अनजानी विपत्ति में फंसना पड़ सकता है। ___मलया बुद्धिमती और तेजस्वी थी। साथ-ही-साथ वह ऋजुमना और सरलहृदया भी । कनकावती की बात पर विश्वास कर वह नवकार मंत्र का स्मरण करती हुई शय्या पर सो गई।
इसी शयनकक्ष के भीतर एक छोटा कक्ष और था। इस खंड में पानी से भरे दो बर्तन पड़े रहते थे।
मलया निद्राधीन हो गई है, यह विश्वस्त जानकारी कर कनकावती राक्षसी का रूप धारण करने के लिए उस लघु कक्ष में गई।
एक छोटा-सा दीपक लेकर उसने उस कक्ष के एक कोने में रखा। फिर कक्ष का द्वार बंद कर, उसने सारे कपड़े उतारे। उसने पानी में हरा और लाल रंग घोला और अपने पूरे शरीर पर उसका विलेपन किया। उस पर उसने काले रंग की रेखाएं बनाईं और मुंह पर चमकता लाल रंग चुपड़ा। __गले में कौड़ियों की दो मालाएं पहनीं। फिर घोड़े के बालों से बनी घघरी पहनी । वह घघरी इतनी ऊंची थी कि उसकी जंघा स्पष्ट दृष्टिगोचर होती थी। देखने वाले को वह स्पष्ट रूप से राक्षसी जैसी लगती थी।
फिर उसने एक जलता हुआ पदार्थ मुंह में भरा।
इस प्रकार तैयार होकर वह बड़े वातायन की ओर गई और दोनों हाथों २१६ महाबल मलयासुन्दरी
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