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और प्रात:काल होते ही महाबल दो सौ वीर सैनिकों को साथ ले उस दुर्दान्त डाकू पर विजय प्राप्त करने चल पड़ा।
रानी कनकावती के हृदय में यह निश्चय हो चुका था कि मलया ने ही महाराजा वीरधवल के समक्ष मेरी बात असत्य प्रमाणित की थी और उसी ने मेरी स्थिति को खराब किया था। यदि मलया मेरी बात को असत्य प्रमाणित नहीं करती तो मैं आज दर-दर की भिखारिन नहीं बनती। ___महाबल के प्रस्थान करते ही रानी कनकावती अवसर की टोह में रहने लगी कि जिससे मलया के सुख में आग लग जाए और उसके हृदय की आग ठंडी हो जाए।
जिसके हृदय में वैर और ईर्ष्या की आग धधकती है, वह दूसरों को ही नहीं जलाता, अपने आपको भी भस्मसात् कर डालता है। किन्तु कितना अज्ञान ! मनुष्य इस भट्ठी में जलते हुए भी नहीं समझ सकता। ___ कनकावती प्रतिदिन मलया के पास आती और उससे प्रेमभरी बातें कर उसका मन बहलाती।
महाबल को प्रस्थान किए एक सप्ताह बीत चुका था। कनकावती ने अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से मलया के हृदय को जीत लिया। मलया ने सोचा, कनकावती का हृदय स्नेह और ममता से परिपूर्ण है।
दूसरी ओर महामारी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था। अब दोचार नहीं, प्रतिदिन दस-बीस व्यक्ति मरने लगे। राज्य के वैद्यों को एकत्रित कर महामंत्री ने उपायों की खोज की। उन्होंने विविध प्रकार के द्रव्यों के मिश्रण से निष्पन्न धुआं सारी नगरी में प्रसृत कराया। लोगों को अनेक गुटिकाएं बांटी, जिससे महामारी के कीटाणु नष्ट हो जाएं।
महामारी के भय से त्रस्त होकर नगर के अनेक साधन-संपन्न व्यक्ति अन्यत्र चले गए।
मलयासुन्दरी कनकावती के साथ बातचीत करते-करते दिन बिता देती थी, किन्तु रात्रि में उसे पति की चिन्ता सताती रहती थी। एक दिन मलया ने ही कनकावती से कहा-'देवी ! यदि रात-भर आप मेरे पास ही रहें तो मुझे आनन्द होगा, मेरा मन लगा रहेगा और अन्यान्य संकल्प-विकल्पों से मैं मुक्त रहूंगी।' - 'मेरा अहोभाग्य ! मैं आपके पास सो जाऊंगी।' कनकावती ने प्रसन्नता के स्वरों में कहा।
और उसी दिन से कनकावती मलया के कक्ष में दिन-रात रहने लग गई।
दो-चार दिन बीते। एक दिन कनकावती ने मलया से कहा—'बेटी ! दो दिनों से मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि तेरे गर्भ को नष्ट करने के लिए कोई
२१२ महाबल मलयासुन्दरी
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