SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो रही थी । एक ओर महामारी का प्रकोप और दूसरी ओर डाक का महान् आतंक | महाराजा सुरपाल ने पल्लीपति के प्रश्न का समाधान पाने के लिए महाबलकुमार से पूछा - 'पुत्र ! पल्लीपति के बारे में सुना तो है ?" 'हां, पिताश्री ! हमें इस समस्या का समाधान तत्काल करना होगा ।' 'तुम्हारा कथन उचित है । मैं स्वयं उससे निपटने के लिए प्रस्थान करने की ' बात सोच रहा हूं ।' 'नहीं, पिताश्री ! यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, जिससे आप को स्वयं जाना पड़े। आप आज्ञा दें तो मैं उस दुर्दान्त डाकू को सदा-सदा के लिए समाप्त कर विजय प्राप्त कर आऊं ।' 'नहीं, पुत्र ! मैं तुझे इस विकट परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रस्थान करने की आज्ञा नहीं दे सकता। फिर युवराज्ञी मलयासुन्दरी को सातवां मास चल रहा है। मैं ही दो-चार दिनों में यहां से निकल पड़ तो अच्छा है ।' 'पिताश्री ! यह नहीं हो सकता। मैं यहां बैठा रहूं और आप भयंकर विपत्ति का सामना करने जाएं, यह मेरे लिए कभी उचित और शोभास्पद नहीं होगा ।' पुत्र के अत्याग्रह को देखकर महाराजा ने आज्ञा दे दी । महाबल कुमार ने माता को भी समझा-बुझाकर अपने पक्ष में कर लिया । और रात को उसने मलया से कहा - 'प्रिये ! मैं कल प्रातःकाल पल्लीपति को नष्ट करने के लिए प्रस्थान करूंगा । उस कार्य में एक-आध महीना लग सकता है । मैं विजय प्राप्त कर शीघ्र ही लौट आऊंगा ।' 1 'स्वामी ! मैं आपको अकेले नहीं जाने दूंगी। मैं भी साथ ही चलूंगी।' मलया ने कहा । 'मलया !' 'हंसते हुए महाबल ने कहा - 'अभी तेरी स्थिति मेरे साथ चलने योग्य नहीं है। एक-दो महीने बाद तू मां होने वाली है । ऐसी स्थिति में मैं तुझे साथ कैसे ले जाऊं ?' 'तो फिर आप भी न जाएं महाबलाधिपति को भेज दें । मैं आपके बिना एक क्षण भी नहीं रह सकती ।' मलया ने दर्दभरे स्वरों में कहा । 'मलया ! तू क्षत्राणी है । ऐसी निर्बलता तुझे शोभा नहीं देती। जो नारी साहस कर अकेली मगधा वेश्या के यहां रहकर रानी कनकावती से बहुमूल्य हार ले आए, वह नारी क्या अपने पति को कर्तव्य च्युत होने की बात कहेगी ? नहीं, मलया ! तू धैर्य रख, मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा। एक महीना लंबा नहीं होता । दिन बीतते पता ही नहीं लगेगा ।' मलया ने भारी हृदय से पति को स्वीकृति दे दी । Jain Education International महाबल मलयासुन्दरी For Private & Personal Use Only २११ www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy