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________________ मलयासुन्दरी को गर्भ धारण किए तीन महीने पूरे हो चुके थे। कनकावती कभी-कभी राजभवन में आती-जाती थी। वह महारानी पद्मावती से मिलती और कभी-कभी युवराज महाबल से भी मिलने आ जाती। मलया उससे दूर ही रहना चाहती थी, क्योंकि संभव है उसको वहां देखकर वह क्षोभ का अनुभव करे। किन्तु एक दिन महाबल और मलयासुन्दरी राजभवन के उपवन में घूम रहे थे और उस समय उधर से कनकावती निकली। उसने मलया को देखा और तत्काल पहचान लिया। उसके मन में वैर की अग्नि भभक उठी। जिस अग्नि पर राख आ चुकी थी, वह अकस्मात् हटी और अग्नि तीव्र वेग से धधकने लगी। उसने मन-ही-मन सोचामलया यहां कैसे? क्या यह अंधकूप से जीवित निकल गयी? क्या इसका विवाह महाबल के साथ हुआ है ? अरे, रात को जो मेरा रुदन सुनकर आया था, वह महाबलकुमार ही होना चाहिए। जब वैर की अग्नि प्रचंड वेग से धधकती है, तब आदमी की शांति भंग हो जाती है और उसका विवेक नष्ट हो जाता है। ___कनकावती अपने मकान में चली गयी 'किन्तु उसके मन में एक ही बात घुलने लगी जिस दुष्ट कन्या के लिए मुझे अपना सुख छोड़ना पड़ा और दर-दर भटकना पड़ा, वह कन्या आज अपने प्रियतम के साथ अनुपम सुख भोग रही है। नहीं-नहीं, इस सुख में मुझे आग लगानी ही पड़ेगी ''मेरा सच्चा आनन्द और सुख मलया की वेदना में छिपा है। उसने मन में निश्चय कर लिया--मलया के साथ परिचय बढ़ानाऔर अवसर मिलने पर वैर का बदला लेना। महाबल मलयासुन्दरी २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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