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________________ कनकावती ने मिष्टान्न खाया, दूध पीया उसने सोचा, एक दिन वह था जब मैं स्वयं राजभवन में इस प्रकार आतिथ्य किया करती थी । अल्पाहार से निवृत्त होकर कनकावती महाबल के साथ महाराजा सुरपाल के पास गयी और लोभसार की संपत्ति के विषय में सारी बात कही । महाराजा ने तत्काल महामंत्री को बुलाकर कहा - 'यह देवी धन्यवादार्ह है । इतनी संपत्ति को भला कौन छोड़ सकता है ?" 'देवी ! लोभसार के खजाने में कितना धन होगा ?" 'दस-बारह गाड़ियां भर सकें, इतना धन तो अवश्य ही होगा ।' कनकावती ने कहा । महाराजा ने महामंत्री को व्यवस्था करने के लिए कहा । महाराजा ने पूछा - 'देवी ! आप कहां रहती हैं ?' 'एक पांथशाला में ।' 'नहीं, देवी कनकावती ! आप हमारी अतिथि हैं। यहां अतिथिगृह में आ जाएं । सारी व्यवस्था हो जाएगी ।' कनकावती राजभवन के अतिथिगृह में आ गयी । महाबल और मलयासुन्दरी ने कनकावती का सही परिचय किसी को नहीं बताया । दूसरे दिन उस अटूट संपत्ति को हस्तगत करने बीस-पचीस गाड़ियां और अनेक सैनिक तथा अन्यान्य साधनों को लेकर बीसों व्यक्ति लोभसार के भंडार की ओर चले । संध्या के बाद सब वापस आ गए। लोभसार की संपत्ति से अठारह गाड़ियां भरी थीं । उस सम्पत्ति को नगर के एक विशाल मकान में रखने की व्यवस्था की गयी और सारे नगर में तथा आस-पास के प्रदेश में यह घोषणा करवायी गई कि प्रमाण देकर अपना-अपना लूटा हुआ माल ले जाएं। यह बात वायुवेग की भांति फैल गयी और लोग सबूत देकर अपना-अपना सामान ले जाने लगे । चार महीने तक यह कार्य चलता रहा । लोगों ने राजा की भूरि-भूरि प्रशंसा की । इतना देने पर भी अटूट संपत्ति शेष रह गयी । महाराजा ने कनकावती को जितना चाहा उतना धन दिया और शेष धन जन-कल्याण के लिए रख दिया । मलया और महाबल के सुमधुर जीवन-स्वप्न में आनन्द की एक नूतन रेखा उभरी । मलयासुन्दरी गर्भवती हो, ऐसे लक्षण प्रतीत होने लगे । राज-परिवार की दाई ने भी मलया का परीक्षण कर इसी बात की पुष्टि की। २०८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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