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स्थान के विषय में कुछ भी नहीं कहा, अन्यथा मैं स्वयं वहां आकर आपकी सारसंभाल करता।'
.. 'कुमारश्री ! मुझे मात्र इतना ही याद रहा था कि आप इस राज्य के राजकुमार हैं। मैं कल नगर में आ पहुंची थी। मेरा आने का उद्देश्य है आपसे मुलाकात करना।'
'आप निश्चिन्त होकर मुझे सारी बात कहें। सेवा हो तो बताएं। क्या: आपकी नाक का घाव भर गया ?'
'हां, किन्तु नाक के कटने का चिह्न रह गया है।' 'देवी ! क्या आप अकेली ही वहां रहती हैं या अन्य पुरुष भी हैं ?'
'कुमारश्रो ! मैं वहां अकेली ही रहती थी। मुझे अलभ्य सुख का लाभ मिला था किन्तु उसका उपभोग भाग्य में नहीं था, इसलिए ज्यों-ज्यों वह प्राप्त होता गया, त्यों-त्यों छूटता गया।'
'देवी ! कर्मों के विपाक दुष्कर होते हैं । यह सारी उन्हीं की माया है।'
'कुमारश्री ! मैं एक प्रयोजन को लेकर आयी हूं। मैं आपबीती आपको क्या बताऊं? मेरा नाम कनकावती है। मेरे स्वामी ने मुझे बिना किसी अपराध के घर से निकाल डाला। एक धूर्त नवयुवक ने मुझे मायाजाल में फंसाया और एक पेटी में बंद कर नदी में बहा दिया। वह पेटी एक यक्ष-मन्दिर के किनारे अटकगई और तब मुझे लोभसार चोर के साथ जाना पड़ा। उसने मुझे हृदय की रानी बनाया। भोग भोगने की लालसा उद्दाम हुई। पर वह भाग्य में नहीं था। मेरा प्रियतम मारा गया। शत्रुओं ने उसे वट-वृक्ष पर लटका दिया। मैं प्रियतम की टोह में घर से निकली। खोजते-खोजते उस वट-वृक्ष के पास पहुंची। लटकते शव को पहचानकर मैं करुण क्रन्दन करने लगी। मुझे भारी आघात लगा। नारी के पास रुदन के सिवाय और है ही क्या ! फिर आप आए...'
'ओह ! आपने बहुत कष्ट सहे। आप अब आने का प्रयोजन बताएं ?'
'कुमारश्री ! महाचोर लोभसार ने लूट-लूटकर अपार संपत्ति एकत्रित की है। वह सारी उसके गुप्त भंडार में सुरक्षित है। ऐसे आह भरे धन का परिणाम भयंकर होता है और उसने वह परिणाम भोगा है। मुझे भी वैसा दारुण परिणाम नहीं भोगना पड़े, इसलिए आपके पास आयी हूं.''आप लोभसार की अपार संपत्ति को यहां जैसे भी लाना चाहें ले आएं और उसका उपयोग करें। ____ 'आपके विचार बहुत उत्तम हैं। निश्चित ही चोरी के धन के पीछे लोगों की
आंहों से निकले दर्द-भरे निःश्वास होते हैं और वे इस धन का उपयोग करने वाले व्यक्ति को कभी सुख की नींद नहीं सोने देते। लोभसार के गुप्त खजाने का माल उन्हीं के मूल स्वामी को प्राप्त हो, ऐसा ही कोई प्रयत्न करना होगा।'
एक दासी दूध का पात्र और मिष्टान्न लेकर आयी। महाबल के आग्रह से
महाबल मलयासुन्दरी २०७०
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