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________________ 'दिव्य' करवाकर अपराध किया है।' बीच में ही मलया ने कहा-'उस दिव्य के कारण ही सारी स्थिति में परिवर्तन आया है और आपके मूल्यवान् प्राणों का रक्षण हुआ है।' रात बीत रही थी। रात्रि का दूसरा प्रहर बीतने वाला था। सभी निद्राधीन हो गए। मलया बहुत थकी हुई थी, फिर भी वह प्रातः जल्दी उठ गई। उसने देखा, महादेवी अभी सो रही है। मलया शय्या पर बैठे-बैठे ही नवकार महामंत्र का जाप करने लग गई। __ स्वयंवर के दूसरे दिन महाबल और मलयासुन्दरी मधुरयामिनी का आनन्द लेने भट्टारिका देवी के मन्दिर पर गए थे और उसके पश्चात् उन दोनों की मिलनघड़ी विपत्ति में फंस चुकी थी। अब विपत्ति के सारे बादल छिन्न-भिन्न हो गए थे और दोनों के जीवन में नया प्रभात नयी उमंगें लेकर आया था। मलया ने जब नवकार मंत्र का जाप पूरा किया, तब सूर्योदय हो चुका था। महादेवी भी जाग गई थी। दूसरे दिन। राजभवन में सभा जुड़ी । हजारों लोग उपस्थित थे । राज-परिवार के सभी सदस्य आ पहुंचे थे। सभी के मन महाबल से वृतान्त सुनने को उत्सुक थे। महाबल ने अथ से इति तक सारा वृत्तान्त सनाया। श्रोता आश्चर्यचकित हो महाबल की ओर देखने लगे। वे महाबल के साहस, विवेक और धैर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। महाराजा ने पूछा---'पुत्र ! लोभसार की पत्नी फिर कहां गई ?' 'पिताश्री ! मुझे पता नहीं। वह अपने गुप्त-स्थान की ओर चली गई थी।' 'महाबल ! और सभी आश्चर्यों से अत्यन्त दुःखद घटना यदि कोई घटित हुई है तो वह है योगी का मरण । बेचारा थोड़े दोष के कारण मारा गया।' 'हां, पिताजी ! यह मेरी असावधानी का ही परिणाम है। यदि मैं शव के मुंह का परीक्षण कर लेता तो उसके मुंह से स्त्री की कटी नाक निकाल लेता... किन्तु जब शव उड़कर चला गया, तब मैं उस आश्चर्य में उलझ गया''मुझे कुछ भी याद नहीं रहा।' ___महाराज ने पूछा-'महाबल ! क्या वह योगी पूरा जलकर राख हो गया था या किसी ने उसे अग्निकुण्ड से बचा लिया ?' ___पिताश्री ! मैंने योगी को अग्निकुण्ड में गिरते देखा था. फिर मुझे वटवृक्ष की डाल पर बांध दिया गया । आप साथ चलें तो अभी वह सारा देख लेते हैं। महाबल ने कहा । महाबल मलयासुन्दरी २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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